लुकमान से किसी ने प्रश्न किया कि आपने इतनी शिष्टता कहाँ से सीखी ? लुकमान ने उत्तर दिया --- " भाई ! मैंने यह शिष्ट व्यवहार अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही सीखा है l " लुकमान का उत्तर सुनकर लोग अचरज में पड़ गए l लुकमान ने और आगे स्पष्ट करते हुए कहा कि अशिष्ट लोगों के बीच रहकर ही मैंने जाना कि अशिष्ट व्यवहार क्या है l मैंने पहले उनकी बुराइयों को देखा l फिर देखा कि कहीं ये बुराइयाँ मुझ में तो नहीं हैं l इस तरह आत्म निरीक्षण से मैं बुराइयों से दूर होता गया और आत्म सुधार के फलस्वरूप लोग मुझे लुकमान से हजरत लुकमान कहने लगे l
2 . खलीफा अली जंग के मैदान में थे l एक मौका आया , जब उन्होंने दुश्मन राजा को उसके घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर बैठ गए l खलीफा ने अपनी तलवार तिरछी की और वो उसे दुश्मन राजा की छाती में भौंकने वाले ही थे कि अचानक दुश्मन राजा ने उनके मुँह पर थूक दिया l खलीफा तुरंत एक तरफ हट गए और बोले ---- " आज की जंग यहीं ख़तम l हम कल फिर लड़ेंगे l " दुश्मन राजा बोला --- " लगता है आप घबरा गए l आज आपके पास मौका है जंग जीतने का , हो सकता है कल ऐसा न हो पाए l " l खलीफा ने उत्तर दिया ---- " मजहब का उसूल है कि कभी जोश में होश खोकर कोई काम न करो l जब तुमने मुझ पर थूका तो मुझे गुस्सा आ गया l गुस्से में किया गया वार हिंसा होती है , इसलिए मैंने कहा कि आज नहीं कल लड़ेंगे l " दुश्मन के अचरज का ठिकाना न रहा l वह तुरंत खलीफा के पैरों में झुक गया और बोला ---- " जो इन्सान जंग भी उसूलों से लड़ता है , उसे मैं क्या दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत भी नहीं हरा सकती l मैं यह जंग आज ही ख़तम करता हूँ l " यह प्रसंग वर्तमान में हो रहे युद्धों के लिए प्रेरणा है l आज युद्ध भी व्यापार है , व्यापर भी ऐसा जिसमे कहीं कोई नैतिकता , जीवन मूल्य नहीं है , निर्दोष प्रजा को , बच्चों को मारना , उन्हें अनाथ बना देना , नारी जाति को अपमानित करना , प्रकृति को प्रदूषित करना ------ यह युद्ध है कि क्या है ?