स्वार्थ , लालच , अहंकार , तृष्णा , कामना , वासना , लोभ , ईर्ष्या , द्वेष , महत्वाकांक्षा --- ये बुराइयाँ थोड़ी - बहुत तो सभी में होती हैं l अल्प मात्र में इनका होना नुकसानदेह नहीं होता , इनकी वजह से ही व्यक्ति तरक्की की राह पर आगे बढ़ता है l यही बुराइयाँ जब किसी व्यक्ति में अति की हो जाती हैं तो उससे उसका नुकसान तो बहुत बाद में होता है , ऐसे दुर्गुणों से ग्रस्त व्यक्ति अपना संगठन बना लेते हैं l बुराई में तुरत लाभ के कारण इस क्षेत्र में आकर्षण तीव्र होता है और ऐसे लोग बहुत जल्दी एक बड़ा संगठन बनाकर समाज में धोखा , छल , कपट , षड्यंत्र जैसे छुपे हुए अपराधों का हिस्सा बन जाते हैं l इन दुर्गुणों की अति से व्यक्ति की संवेदना समाप्त हो जाती है , वह केवल अपना स्वार्थ देखता है l इस स्वार्थ पर किसी की भी जिन्दगी पर खतरा आ जाए उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता l भ्रष्टाचार , बड़े -बड़े घोटाले , जघन्य अपराध , परिवार में होने वाली हत्याएं , मुकदमे आदि इन दुर्गुणों की अति के ही दुष्परिणाम है l सन्मार्ग पर चलने वालों की संख्या बहुत कम है , आसुरी तत्व उन्हें चैन से जीने नहीं देते l वे हमेशा भयभीत रहते हैं कि प्रकाश होगा तो अंधकार का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा l आसुरी प्रवृत्ति के लोगों की संख्या बहुत अधिक होने से सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि कौन किसे दंड दे , किसकी शिकायत करे ? सब एक नाव में सवार हैं l ऐसे में कोई ईश्वरीय चमत्कार ही परिवर्तन ला सकता है l