राजा ऋषभ देव के 100 पुत्र थे l उन्होंने यह व्यवस्था कर दी थी कि उनकी मृत्यु उपरांत ज्येष्ठ पुत्र भरत को राजगद्दी दी जाए और शेष पुत्र गृह त्याग कर संन्यासी हो जाएँ l पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर वरिष्ठ पुत्रों ने संन्यास ले लिया l बाहुबली को यह निर्णय स्वीकार नहीं हुआ l उसने भरत के साथ ज्ञान की प्रतियोगिता रखवाई l उसमें वह जीत गया l इससे भरत को ईर्ष्या हुई l उसने बाहुबली को युद्ध के लिए ललकारा l बाहुबली ताकतवर था l उसने जैसे ही भरत को मारने के लिए हाथ उठाया , उसे यह विचार आया कि यदि मैंने अपने भाई के प्राण लेकर राजगद्दी संभाली तो राज्य की जनता यही कहेगी कि जो राजा बनने के लिए अपने भाई का खून कर सकता है , वह जनता की सेवा क्या करेगा ? वह महत्वाकांक्षा को त्यागकर भरत को राजगद्दी सौंपकर मानवता की सेवा हेतु चल पड़ा और तीर्थंकर कहलाया l