पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " भगवान पत्र -पुष्पों के बदले नहीं , भावनाओं के बदले प्राप्त किए जाते हैं और वे भावनाएं आवेश , उन्माद या कल्पना जैसी नहीं , वरन सच्चाई की कसौटी पर खरी उतरने वाली होनी चाहिए l उनकी सच्चाई की परीक्षा मनुष्य के त्याग , बलिदान , संयम , सदाचार एवं व्यवहार से होती है l " ---------गुजरात की राजमाता मिनल देवी ने भगवान सोमनाथ का विधिवत् अभिषेक कर के उन्हें स्वर्ण दान किया l राजमाता के मन में अहंकार आ गया कि भगवान को ऐसा दान किसी ने नहीं किया होगा l रात्रि को स्वप्न में भगवान सोमनाथ ने राजमाता से कहा ---- " मेरे मंदिर में एक गरीब महिला आई है l उसका आज का पुण्य तुम्हारे स्वर्ण दान से कई गुना ज्यादा है l " राजमाता ने उस महिला को महल में बुलवा लिया l राजमाता उससे बोलीं ---- " तुम अपना संचित पुण्य दे दो , उसके बदले में जितनी भी धनराशि लगेगी , वह मैं देने को तैयार हूँ l " वह गरीब महिला बोली ---- " राजमाता ! मुझ गरीब से भला क्या पुण्य कार्य हुआ होगा ? मुझे तो यह भी पता नहीं कि मैंने क्या पुण्य किया है , तो मैं आपको क्या अर्पित करुँगी ? " राजमाता ने उससे उसके विगत दिवस के क्रियाकलाप के विषय में पूछा ताकि यह पता चल सके कि उसे किस कार्य हेतु अपार पुण्य मिला है l प्रत्युत्तर में गरीब महिला बोली ----- " राजमाता ! मैं तो अत्यंत गरीब हूँ l मुझे कल किसी व्यक्ति ने दान में एक मुट्ठी बूंदी दी थी l उसमे से आधी बूँदी मैंने भगवान सोमेश्वर को भोग में चढ़ा दी और शेष आधी खाने चली थी कि एक भिखारी ने मुझसे मांग ली तो वह मैंने उसे दे दी l " राजमाता समझ गईं कि उस गरीब महिला का निष्काम कर्म उनके स्वर्णदान से बढ़कर है l भगवान भावनाओं का मोल समझते हैं l