10 August 2024

WISDOM ----- कर्मों के फल से कोई बचता नहीं

     एक  दिन  प्रव्रज्या  करते  हुए  तीर्थंकर  भगवान  महावीर   कौशाम्बी  नगर  पहुंचे  l   वहां  भगवान  महावीर  अपने  प्रवचन  में  कह  रहे  थे  ----- "  इस  धरती  पर  जितने  भी  प्राणी  हैं  ,  वे  सब  अपने -अपने  संचित  कर्मों  के  कारण  ही  संसार  में  चक्कर  लगाते  हैं  l  जीवन -मरण  के  चक्रव्यूह  में  फँसते  हैं  l  अपने  किए  अच्छे -बुरे  , शुभ -अशुभ ,  पुण्य कर्मों  के  कारण  ही   विभिन्न  योनियों  में  जन्म  लेते  हैं  l  अपने  किए  हुए  कर्मों  का  फल   हर  प्राणी  को  भोगना  ही  पड़ता  है  l --------------- "   भगवान  महावीर  ने  देखा  जब  वे  प्रवचन  कर  रहे  थे  , तब  उनके  पास  बैठा  उनका  शिष्य   गौतम  स्वामी  बार -बार  पीछे  मुड़कर  देख  रहा  था  ,  उसका  मन  सत्संग  में  नहीं  था  l   जब  सत्संग  पूरा  हुआ  तब  भगवान  महावीर  ने  गौतम  स्वामी  से   इसका  कारण  पूछा  l  गौतम  स्वामी  ने  कहा ---- "  भगवन  !  आज  मैं  सत्संग  में  आए  उस   वृद्ध  व्यक्ति  को  देख  रहा  था  , जो   अँधा  है  और  शरीर  पर  जखम  और  घाव  की  पीड़ा  से  कराह  रहा  है  l  क्या इससे  भी  अधिक  कोई  और  अभागा  और  दुःखी   हो  सकता  है  l  "   भगवान  महावीर  ने  कहा ---- " वत्स  !   उस  अंधे  का  तो  कुछ  पुण्य  भी  है  l  आँखों  के  सिवाय  उसके  और  अंग  तो  ठीक  हैं  ,  वह  तो  चल  -फिर  भी  सकता  है  ,  लेकिन  यहाँ  के  राजा   विजय  प्रताप  का  बालक  मकराक्ष  तो  बिना  हाथ -पैर  का  मांस  के  पिंड  जैसा  है  l  वह  राजघराने  में  ऐशोआराम  की  वस्तुओं  के  बीच  पल  रहा  है  l  राजमहल  में  जन्म  लेने  के  बावजूद   राजसी  सुखों  से  वंचित  है   और  दारुण  दुःख  झेल  रहा  है  l "   गौतम  स्वामी  ने  पूछा  --- "  भगवन  !  यदि  आपकी  आज्ञा   हो  तो   मैं  राजमहल  जाकर  उसे  देख   आऊँ  ? "  भगवान  महावीर  ने  अनुमति  दे  दी  l  गौतम  स्वामी  राजमहल  पहुंचे  तब  राजा  ने   उनकी  आवभगत  की   और  कहा --- "  आपके  आने  से  हमारा  राजमहल  पवित्र  हो  गया  l  आज्ञा  दें  , हम  आपकी  क्या  सेवा  कर  सकते  हैं  ?  "  गौतम  स्वामी  ने  कहा --- "   राजन  !  क्या  आपके  राजमहल  में  किसी  ऐसे  जिव  का  पालन  हो  रहा  है  ,  जो  अंगविहीन  मांसपिंड  जैसा  है  ?  "  यह  सुनकर  राजा -रानी  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ   क्योंकि  यह  बात  राजमहल  के  बाहर  किसी  को  पता  नहीं  थी  l  गौतम  स्वामी  बोले --- "  मुझे  यह  मेरे  गुरु  ने  बताया   और  उनके  आदेश  से  ही  मैं  आपके  पुत्र  मकराक्ष  को  देखने  आया  हूँ  l "    राजा  उन्हें  उस  एकांत  कमरे  में  ले  गए  जहाँ  उनके  पुत्र  मकराक्ष  को  रखा  जाता  था  l  गौतम  स्वामी  ने  देखा  कि  अंगविहीन  मकराक्ष  वहां  दारुण  पीड़ा  से  कराह  रहा  है  l  राजमहल  से  वापस  आकर  उन्होंने  भगवान  महावीर  से  पूछा  --- " मकराक्ष  ने  ऐसा  कौन  सा  कर्म  किया   होगा  , जो  राजमहल   में  जन्म  लेकर  भी  दारुण  दुःख  झेल  रहा  है  l  "    भगवान  महावीर  बोले ---- "  मकराक्ष  अपने  पूर्व जन्म  में   इसी  क्षेत्र  के  सुकर्ण पुर  नगर  का  स्वामी  था   उसके  अधीन  अन्य  पांच  सौ  ग्राम  भी  थे   l  वह  लूटमार , व्यभिचार  , अपहरण  आदि  बुरे  कर्मों  में  ही  निरत  रहता  था  l  वह  अपनी  प्रजा  पर  घोर  अत्याचार  कर  उसे  बहुत  दुःख  देता  था  l  वह  साधु -संतों  का  अपमान  और  सत्संग  का  निरादर  करता  था  l  पूर्व  जन्म  के  इन  बुरे  कर्मों  के  कारण  ही   वह  अंगविहीन  मांसपिंड  के  रूप  में  जन्मा  है   और  राजमहल  में  जन्म  लेने  के  बावजूद  राजसी  सुखों  से  वंचित  है  l  "