एक दिन प्रव्रज्या करते हुए तीर्थंकर भगवान महावीर कौशाम्बी नगर पहुंचे l वहां भगवान महावीर अपने प्रवचन में कह रहे थे ----- " इस धरती पर जितने भी प्राणी हैं , वे सब अपने -अपने संचित कर्मों के कारण ही संसार में चक्कर लगाते हैं l जीवन -मरण के चक्रव्यूह में फँसते हैं l अपने किए अच्छे -बुरे , शुभ -अशुभ , पुण्य कर्मों के कारण ही विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं l अपने किए हुए कर्मों का फल हर प्राणी को भोगना ही पड़ता है l --------------- " भगवान महावीर ने देखा जब वे प्रवचन कर रहे थे , तब उनके पास बैठा उनका शिष्य गौतम स्वामी बार -बार पीछे मुड़कर देख रहा था , उसका मन सत्संग में नहीं था l जब सत्संग पूरा हुआ तब भगवान महावीर ने गौतम स्वामी से इसका कारण पूछा l गौतम स्वामी ने कहा ---- " भगवन ! आज मैं सत्संग में आए उस वृद्ध व्यक्ति को देख रहा था , जो अँधा है और शरीर पर जखम और घाव की पीड़ा से कराह रहा है l क्या इससे भी अधिक कोई और अभागा और दुःखी हो सकता है l " भगवान महावीर ने कहा ---- " वत्स ! उस अंधे का तो कुछ पुण्य भी है l आँखों के सिवाय उसके और अंग तो ठीक हैं , वह तो चल -फिर भी सकता है , लेकिन यहाँ के राजा विजय प्रताप का बालक मकराक्ष तो बिना हाथ -पैर का मांस के पिंड जैसा है l वह राजघराने में ऐशोआराम की वस्तुओं के बीच पल रहा है l राजमहल में जन्म लेने के बावजूद राजसी सुखों से वंचित है और दारुण दुःख झेल रहा है l " गौतम स्वामी ने पूछा --- " भगवन ! यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं राजमहल जाकर उसे देख आऊँ ? " भगवान महावीर ने अनुमति दे दी l गौतम स्वामी राजमहल पहुंचे तब राजा ने उनकी आवभगत की और कहा --- " आपके आने से हमारा राजमहल पवित्र हो गया l आज्ञा दें , हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं ? " गौतम स्वामी ने कहा --- " राजन ! क्या आपके राजमहल में किसी ऐसे जिव का पालन हो रहा है , जो अंगविहीन मांसपिंड जैसा है ? " यह सुनकर राजा -रानी को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि यह बात राजमहल के बाहर किसी को पता नहीं थी l गौतम स्वामी बोले --- " मुझे यह मेरे गुरु ने बताया और उनके आदेश से ही मैं आपके पुत्र मकराक्ष को देखने आया हूँ l " राजा उन्हें उस एकांत कमरे में ले गए जहाँ उनके पुत्र मकराक्ष को रखा जाता था l गौतम स्वामी ने देखा कि अंगविहीन मकराक्ष वहां दारुण पीड़ा से कराह रहा है l राजमहल से वापस आकर उन्होंने भगवान महावीर से पूछा --- " मकराक्ष ने ऐसा कौन सा कर्म किया होगा , जो राजमहल में जन्म लेकर भी दारुण दुःख झेल रहा है l " भगवान महावीर बोले ---- " मकराक्ष अपने पूर्व जन्म में इसी क्षेत्र के सुकर्ण पुर नगर का स्वामी था उसके अधीन अन्य पांच सौ ग्राम भी थे l वह लूटमार , व्यभिचार , अपहरण आदि बुरे कर्मों में ही निरत रहता था l वह अपनी प्रजा पर घोर अत्याचार कर उसे बहुत दुःख देता था l वह साधु -संतों का अपमान और सत्संग का निरादर करता था l पूर्व जन्म के इन बुरे कर्मों के कारण ही वह अंगविहीन मांसपिंड के रूप में जन्मा है और राजमहल में जन्म लेने के बावजूद राजसी सुखों से वंचित है l "