पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' मनुष्य मोह -माया , कामना , वासना और तृष्णा के जाल में , इसकी दलदल में ऐसा फँसा है कि उसका विवेक जाग्रत ही नहीं हो पाता l जिस तरह मक्खी या चींटी गुड़ की चाशनी में एक बार चली जाए तो फिर वहां से वह निकल नहीं पाती और अंततः उसकी वहीँ मृत्यु हो जाती है l " उम्र चाहे ढल जाए लेकिन विवेक न होने के कारण मनुष्य इन एषणा के दलदल के बाहर नहीं निकल पाता , इच्छाओं का अंत नहीं है l इसी संबंध में श्रीरामकृष्ण परमहंस जी एक कथा कहते हैं ------ एक व्यक्ति घने जंगल में भागा जा रहा था l घना अँधेरा था l अँधेरे के कारण रास्ते में कुआँ उसे दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया l गिरते -गिरते उसके हाथ में कुएं पर झुके हुए वृक्ष की डाल आ गई l उसने नीचे झाँका तो देखा कुएं में चार विशाल अजगर ऊपर की ओर मुँह फाड़े देख रहे हैं l उसने ऊपर देखा तो दो चूहे उस डाल को कुतर रहे थे जिसे वह पकड़े था l इतने में एक हाथी कहीं से आया और वृक्ष के तने को हिलाने लगा l उस वृक्ष के ठीक ऊपर की शाखा पर मधुमक्खी का छत्ता था l हाथी के हिलाने से मक्खियाँ उड़ने लगीं और छत्ते से शहद की बूँदे टपकने लगीं l एक बूँद शहद उसके ओठों पर गिरा l उसकी जीभ तो प्यास से सूख रही थी , उसने जीभ को ओठों पर फेरा , शहद की उस बूँद में अद्भुत मिठास थी l उसने मुँह ऊपर किया तो कुछ क्षण बाद फिर शहद की बूँद मुँह में टपकी l वह उसकी मिठास में इतना मगन हो गया कि आसपास की विपत्तियों को भूल गया l उसी समय शिव -पार्वती जंगल से भ्रमण करते हुए निकले l पार्वतीजी ने भगवान शिव से उसे बचा लेने का अनुरोध किया l शिवजी ने उसके निकट जाकर कहा --- " आओ , मैं तुम्हे बाहर निकालता हूँ , मेरा हाथ पकड़ लो l " उस व्यक्ति ने कहा ---- " बस , एक बूँद शहद और चाट लूँ फिर मुझे निकाल लेना l " हर बूँद के बाद अगली बूँद की प्रतीक्षा चलती रही l अंत में भगवान शिव उसे छोड़कर चले गए और वह व्यक्ति वहीँ फँसकर रह गया l इस कथा में प्रतीकात्मक अर्थ हैं ---- अजगर मृत्यु का प्रतीक है l दो चूहे दिन और रात का l हर पल बीतने के साथ व्यक्ति मृत्यु की ओर बढ़ता है l शहद की बूँदे सांसारिक सुख हैं , वह इस सुख में इतना डूबा हुआ ही कि उसे आसपास के खतरे भी दिखाई नहीं देते l सुख की माया में डूबे हुए व्यक्ति को फिर भगवान भी नहीं बचा पाते l