आतंकवाद एक दूषित मानसिकता है l आतंकवादी केवल वे नहीं हैं जो दूसरे देशों से आकर मासूम , निर्दोष और निरीह लोगों को मारकर अपनी कायरता का प्रमाण देते हैं l आतंकवादी एक राक्षस के समान होते हैं , इनके ह्रदय में संवेदना नहीं होती l इनका दिल पत्थर की तरह होता है जिसमें क्रूरता होती है l ये निर्दयी और क्रूर होते हैं मानवता इनमें नहीं होती l ऐसे दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति परिवार , समाज राष्ट्र और संसार में हैं जो अक्सर मुखौटा लगाकर , कभी प्रत्यक्ष रूप से , कभी तंत्र आदि नकारात्मक शक्तियों की मदद से और कभी षड्यंत्र रचकर , धोखा देकर अपनी निर्दयता और क्रूरता का परिचय देते हैं l ऐसे आतंकवादियों से स्वयं की सुरक्षा बड़ा कठिन है l कहीं तो जन्म से ही आतंकी बनने की ट्रेंनिंग दी जाती है लेकिन अनेक ऐसे उदाहरण हैं जहाँ व्यक्ति के पूर्व जन्मों के संस्कार के जाग्रत हो जाने के कारण उसमें निर्दयता , क्रूरता , अहंकार जैसे दुर्गुण आ जाते हैं और इन्हीं के पोषण के लिए वो जघन्य कार्य करता है l त्रेतायुग और द्वापरयुग में जब पाप का प्रतिशत इतना अधिक नहीं था तब अत्याचार , अन्याय अधिकांशत: प्रत्यक्ष था लेकिन कलियुग में कायरता बढ़ जाने के कारण पीठ में छुरा भौंकने के उदाहरण बहुत अधिक हैं l आतंकवादी मानसिकता का महाभारत का प्रसंग है ----- गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा बहुत वीर था l उसे भी शस्त्र -शास्त्र का अच्छा ज्ञान था लेकिन बुद्धि भ्रष्ट हो गई , उसने शिविर में रात्रि में प्रवेश कर सोए हुए द्रोपदी के पांच पुत्रों को मार डाला l इससे भी उसको शांति न मिली तो अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भस्थ पुत्र को मारने के लिए किया l इस अमानवीय कृत्य से सभी चीत्कार उठे l द्रोपदी ने भीम से कहा कि तुम्हारा इतना बल किस काम का , जो निर्दयी अश्वत्थामा को दण्डित न कर सके l जब भीम अश्वत्थामा के पास जाने लगे तो भगवान श्रीकृष्ण ने भीम को रोका और कहा कि इस समय अश्वत्थामा राक्षस बन चुका है , अपनी सभी मर्यादा और नीतियों को भूलकर दानव बन गया है l उसकी मन:स्थिति में दया नहीं , क्रूरता है , वह भीम को भी मार सकता है l ---यही मानसिकता आतंकवादियों की होती है l निर्दयता , क्रूरता , चालाकी जैसे दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति अब समाज में ही घुल-मिलकर रहते हैं l इनका सच तो वही समझ पाता है जिसका उनसे पाला पड़ता है l