24 August 2024

WISDOM ------

   राजा  जनक  अपनी  साज -सज्जा  के  साथ  मिथिलापुरी  के  राजपथ  पर  गुजर  रहे  थे  l  उनकी  सुविधा  के  लिए   सारा  रास्ता  पथिकों  से  शून्य  बनाने  में   राजकर्मचारी   लगे  थे  l  राजा  की  शोभा  यात्रा  निकल  जाने  तक   यात्रियों  को   अपने  आवश्यक  काम  छोड़कर   जहाँ  तहां   रुका  रहना  पड़  रहा  था   l  अष्टावक्र   को  हटाया  गया   तो  उन्होंने  हटने  से  इनकार  कर  दिया   और  कहा ---- ' प्रजाजनों  के  आवश्यक  कार्यों  को  रोककर   अपनी  सुविधा  का  प्रबंध  करना   राजा  के  लिए  उचित  नहीं  है  l  राजा  अनीति  करे  ,  तो  ब्राह्मण  का  कर्तव्य   है  कि  वह  उसे  रोके   और  समझाए  l  सो  आप  राज्य अधिकारीगण   राजा  तक  मेरा  संदेश  पहुंचाएं   और  कहे  कि   अष्टावक्र  ने  अनुचित  आदेश  मानने  से  इनकार  कर  दिया  l  वे  हटेंगे  नहीं  और  राजपथ  पर  ही  चलेंगे  l   राज्याधिकारी  कुपित  हुए   और  अष्टावक्र  को  बंदी  बनाकर  राजा  के  पास  ले  गए  l   राजा  जनक  ने  जब  सारा  किस्सा  सुना  तो  बहुत  प्रभावित  हुए   और  कहा --- "  ऐसे  निर्भीक  ब्राह्मण  राष्ट्र  की   सच्ची   संपत्ति  हैं   l  उन्हें  दंड  नहीं  सम्मान  दिया  जाना  चाहिए  l  राजा  जनक  ने  अष्टावक्र  से  क्षमा  मांगी   और  कहा --- 'मूर्खतापूर्ण  आज्ञा   राजा  की  ही  क्यों  न  हो  , तिरस्कार  के  योग्य  है  l  आपकी  निर्भीकता  ने  हमें  अपनी  गलती  समझने  और  सुधारने   का  अवसर  दिया  l  आज  से  आप  राजगुरु   रहेंगे   और  इसी  निर्भीकता   से  सदा  न्याय  पक्ष  का   समर्थन   करते  रहने  की  कृपा  करेंगे  l  उन्होंने  प्रार्थना  स्वीकार  कर  जनहित  हेतु  राजगुरु  का  पद  स्वीकार  किया  l