अरब देश में एक प्रसिद्ध सुल्तान रहा करते थे l वे बड़े न्याय प्रिय एवं प्रजावत्सल थे l एक बार सुल्तान जंगल की सैर को निकले l उन्हें शिकार अत्यंत प्रिय था l एक बार संध्या के समय वे सूर्यास्त का द्रश्य देख रहे थे , तभी उन्हें लगा कि टीले पर कोई जानवर बैठा है तो उन्होंने तुरंत निशाना साध कर उस पर तीर छोड़ा l तीर लगते ही एक जोर की चीख सुनाई पड़ी l चीख सुनकर सुल्तान काँप उठे क्योंकि यह एक मनुष्य की चीख थी l उन्होंने पास जाकर देखा कि एक बालक तीर से घायल होकर पीड़ा से छटपटा रहा था l कुछ ही समय में उसका मजदूर पिता भी वहां आ गया l अपने पुत्र की यह हालत देखकर , वह बहुत बेहाल हो गया l सुल्तान ने बालक का शीघ्र उपचार कराया और उसके बाद दो थाल बालक के पिता के लिए मंगवाए l एक में अशर्फियाँ और दूसरे में तलवार रखी थी l सुल्तान मजदूर से बोले ---- " मैंने जानवर समझ कर तीर छोड़ा था , परन्तु गलती से तुम्हारे पुत्र को लगा l किन्तु तब भी तीर चलाने के कारण दोष तो मेरा ही है l तुम चाहो तो अशर्फियाँ लेकर इस भूल को माफ़ कर दो अन्यथा यदि मुझे माफ़ी का हक़दार न पाओ तो मेरा सिर तलवार से कलम कर दो l " सुल्तान की न्यायप्रियता देखकर मजदूर दांग रह गया l उसने कहा ---- " हुजुर ! मुझे दोनों में से कुछ नहीं चाहिए l केवल आप यह भूल दोबारा न करें l आप निरीह प्राणियों का वध करना छोड़ दें l " बादशाह ने उस दिन के बाद से शिकार करना छोड़ दिया l