उज्जयिनी नगर में एक निडर व साहसी युवक रहा करता था l उसे ज्ञात हुआ कि राज्य के राजा के नि:संतान मर जाने के कारण नए राजा की तलाश हो रही है l उस युवक ने उस हेतु स्वयं का नाम प्रस्तावित करने की सोची l राज्य के मंत्रियों ने उसे बताया कि तुमसे पहले भी अनेक लोग इस हेतु आए , परन्तु किसी शापवश उनमें से प्रत्येक का निधन राज्याभिषेक की रात्रि में ही हो गया l जीवन सुरक्षित चाहते हो तो ऐसा न करो l युवक निडर था l उसने बिना किसी भय के चुनौती स्वीकार कर ली l राज्याभिषेक होने के उपरांत उसने विचार किया कि अवश्य किसी देव या दानव का का रोष इस राज्य पर रहा होगा , उसे संतुष्ट कर देने से इस समस्या से बचा जा सकता है l उसने रात्रि में अपने कक्ष में अनेक व्यंजन बनवा कर रखे और वह स्वयं एक कोने में तलवार लेकर बैठ गया l रात को देवराज इंद्र का द्वारपाल , अग्निवेताल वहां आया और उन व्यंजनों के देखकर प्रसन्न हो गया l उन्हें ग्रहण कर के वह बोला ---- " राजन ! यदि तुम नित्य ऐसे व्यंजन का प्रबंध करो तो मैं तुम्हे अभयदान दूंगा l " राजा ने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उससे कहा ---- " तुम देवराज इंद्र से पूछकर के बताओ कि मेरी उम्र कितनी है l " अगले दिन अग्निवेताल ने उसे बताया --- " उसकी उम्र सौ वर्ष है l " यह सुनते ही राजा ने तलवार अग्निवेताल के सिर पर रख दी और कहा ---- " इसका अर्थ है कि तुम मेरा अंत सौ वर्ष तक नहीं कर सकते l " अग्निवेताल राजा की बुद्धिमत्ता और निडरता से अत्यंत प्रसन्न हुआ और उन्हें अक्षुण्ण राज्य का वरदान दिया l वह राजा ही आगे चलकर सम्राट विक्रमादित्य के नाम से प्रसिद्ध हुए l