कहते हैं जो धर्म की रक्षा करता है , धर्म भी उसकी रक्षा करता है l महाभारत में अर्जुन के चरित्र से इस सत्य को बताया गया है l ---अर्जुन महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक थे l अपनी निश्छल भक्ति और विनम्रता के कारण वे श्रीकृष्ण को प्रिय थे l अर्जुन के जीवन में संयम और इन्द्रिय संयम अपने चरम शिखर पर थे l जुए में हार जाने के कारण जब पांडवों को वनवास हुआ तब महर्षि व्यास की आज्ञा से दिव्यास्त्रों को प्राप्त करने के लिए अर्जुन ने कठोर तप किया और भगवन शिवजी को प्रसन्न कर ' पाशुपत अस्त्र ' प्राप्त किया l अन्य देवताओं ने भी उनके तप से प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य अस्त्र प्रदान किए l देवराज इंद्र अर्जुन के पिता थे उन्होंने प्रसन्न होकर उन्हें कुछ समय के लिए स्वर्ग में रहने के लिए अपने सारथि मातलि को रथ लेकर भेजा l अर्जुन उसके साथ रथ पर बैठकर स्वर्ग पहुंचे l वहां पहुंचकर वे स्वर्ग के वैभव में खोए नहीं , उन्होंने वहां चित्रसेन गन्धर्व से नृत्य -गान -वाद्य आदि का ज्ञान प्राप्त किया l एक दिन अर्जुन भी इंद्र की सभा में बैठे थे l उस सभा में उर्वशी , रम्भा आदि अप्सराएँ बड़ा सुन्दर नृत्य कर रहीं थीं l देवराज ने देखा कि उर्वशी की द्रष्टि अर्जुन पर टिकी है l उन्होंने अर्जुन के इन्द्रिय संयम की परीक्षा लेनी चाही और चित्रसेन गन्धर्व के द्वारा उर्वशी को रात्रि में अर्जुन के शयन कक्ष में भेजा l तपस्वियों के तप को भंग करने के लिए वे उर्वशी , मेनका आदि अप्सराओं को भेजते थे और वे अपने उदेश्य में सफल भी होती थीं l उर्वशी बहुत प्रसन्न थी l कहते हैं अप्सराएँ इतनी खूबसूरत हैं कि उनके कटाक्ष से ही बड़े -बड़े तपस्वी , धर्म धुरंधर ध्वस्त हो जाते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- सभाओं में ज्ञान -विज्ञानं , धर्म , अध्यात्म , संयम की चर्चा करना , बड़ी -बड़ी बातें करना बहुत सरल है , पर उन्हें अपने जीवन से , आचरण से प्रस्तुत करना और बात है l ऐसे समय में ही साधकों के संयम की परीक्षा होती है l आज अर्जुन की अग्नि परीक्षा थी l उर्वशी को अपने शयन कक्ष में देखकर अर्जुन तुरंत अपने बिस्तर से उठ खड़े हुए और बोले ---- " माते ! आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया ? " उर्वशी ने अपनी कामना अर्जुन के सामने प्रकट की और अपने पक्ष में अनेक दलीलें दीं , निवेदन किया किन्तु अर्जुन अविचलित , अविकारी रहे , उन्होंने कहा ---मेरी द्रष्टि में कुंती , माद्री और शची का जो स्थान है , वही आपका भी है l आप मेरी माता के समान हैं , पूजनीय हैं , आप लौट जाएँ l गीता में भगवान ने कहा है , कामना पूर्ति में बाधा आने से क्रोध उत्पन्न होता है l अपनी कामना पूर्ति में विफल होने से उर्वशी बहुत क्रोधित हुई और उसने अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक होने का शाप दे दिया l अर्जुन ने उर्वशी से शापित होना स्वीकार किया लेकिन अपने दृढ संयम को नहीं तोड़ा l l जब इंद्र को यह बात ज्ञात हुई तो उन्होंने अर्जुन से कहा ---- " पुत्र ! तुमने तो इन्द्रिय संयम के द्वारा ऋषियों को भी पराजित कर दिया l उर्वशी का यह शाप तुम्हारे लिए वरदान बन जायेगा l वनवास के तेरहवें वर्ष में जब तुम्हे अज्ञातवास में रहना होगा , उस समय यह शाप तुम्हारे लिए सहायक होगा , वरदान सिद्ध होगा l " अज्ञातवास के समय अर्जुन ने ब्रह्न्ल्ला नम्म से नर्तक वेश में रहकर विरत की राजकुमारी उत्तरा को संगीत और नृत्य की विद्या सिखाई और एक वर्ष बाद वे शापमुक्त हो गए l