जीवन के संघर्ष और समुद्री तूफ़ान की आँधियों से दुःखी एक नाविक जहाज से उतारकर आया तो द्वीप के किनारे खड़ी एक अविचलित , अडिग , चट्टान को देखकर बड़ी शांति को प्राप्त हुआ l स्वच्छ , सुन्दर सी उस चट्टान पर खड़े होकर , वह चारों ओर देखने लगा l उसने देखा कि द्वीप के एक कोने में स्थित उस चट्टान पर निरंतर समुद्र की उत्ताल तरंगों का आघात हो रहा है , तो भी चट्टान के मन में न कोई रोष है , न विद्वेष l l न कोई ऊब , न उत्तेजना l मरने की भी उसने कभी इच्छा नहीं की l नाविक का ह्रदय श्रद्धा से भर गया l उसने चट्टान से पूछा ----- " तुम पर चारों ओर से आघात लग रहे हैं , फिर भी तुम परेशान नहीं हो l तुम्हारी इस सहनशीलता का कारण क्या है ? क्या तुम इस स्थिति में स्वयं को निराश नहीं मानती l " चट्टान की आत्मा धीरे से बोली ---- " तात ! हम निराश हो गए होते तो एक क्षण ही सही दूर से आए आप जैसे अतिथियों को विश्राम देने , उनका स्वागत करने से वंचित रह जाते l संघर्षों से लड़ने में ही हमें आनंद आता है l " नाविक ने प्रेरक भाव भरकर स्वयं से कहा ----- " जीवन में कितने ही संघर्ष आएं , मैं भी अब इस चट्टान की तरह जिऊंगा , ताकि हमारी न सही , हमारी भावी पीढ़ी और मानवता के आदर्शों की रक्षा हो सके l