14 August 2024

WISDOM

    स्वामी  विवेकानंद  ने  योग   सीखने  आई   एक  युवती  से  कहा  था  कि   तुम्हे  इस  मार्ग  पर  गतिशील  होने  में  कई  जन्म  लगेंगे  l  वह  युवती  कक्ष  में  आकर  बैठी  ही  थी   और  सिर्फ  इतना  ही  पूछ  पाई  थी  कि  मुझे   सिद्धि  प्राप्त  करने  में  कितना  समय  लगेगा  ?  कितने  महीनों  में  मैं  साधना  पूरी  कर   संकूंगी  ?   स्वामी जी  ने  इस  प्रश्न  का  उत्तर  दिया  था   और  कारण  भी  तुरंत  बता  दिया  था   कि  कक्ष  में  प्रवेश  करने  से  पहले   तुमने  जूते  ऐसे  उतारे  ,  जैसे  उन्हें  फेंक  रही  हो  l  कुरसी  की  बांह   लगभग   मरोड़ते  हुए   अंदाज  में  खींची   और  धमककर  बैठ  गई  l  फिर  बैठे -बैठे  ही  इसे  मेज  के  पास   घसीटते  हुए   से  खींचा   और  व्यस्थित  किया  l  एक  मिनट  के  इस  व्यवहार   में  स्वामी जी  ने   न  तो  हड़बड़ी   को  कारण  बताया   और  न  ही  फूहड़ता  को  l  युवती  ने  पूछा  भी  नहीं  था   और   स्वामी जी  ने    कारण  बताया   कि  हम  जिन  वस्तुओं  को  काम  में  लाते  हैं  ,  जो  हमारी  जीवन  यात्रा   और  स्थिति  में  सहायक  हैं   और  जो  हमारे  व्यक्तित्व  के  ही  एक  अंग  हैं  ,  उनके  प्रति  क्रूरता  हमारी   चेतना  के  स्तर  को  दर्शाती  है   l  दैनिक  जीवन  में  काम  आने  वाली    वस्तुओं   , व्यक्तियों    और  प्राणियों  के  प्रति  भी   मन  में  संवेदना  नहीं  है  ,  तो  विराट  अस्तित्व  से  किसी  व्यक्ति  का  तादात्म्य   कैसे  जुड़  सकता  है   ?   अपने  आसपास  के  जगत  के  प्रति   जो  संवेदनशील  नहीं  है  ,  वह  परमात्मा  के  प्रति  कैसे  खुल  सकता  है  ?    संवेदना  व्यक्ति  को  विराट  के  प्रति  खोलती  है  ,  उसे  ग्रहणशील  बनाती  है   l  स्वामी  चिन्मयानन्द  ने  लिखा  है  कि  संवेदनशील  व्यक्ति  जड़  वस्तुओं  के  प्रति  भी  इस  तरह  व्यवहार  करता  है   जैसे  वे  उसके  अति  आत्मीय  स्वजन  हों   l  न  केवल  आत्मीय  स्वजन  हों  ,  बल्कि  उनके  अपने  ही  शरीर  का  एक  हिस्सा  हों   l