1. बात उन दिनों की है , जब बुद्ध के प्रथम शिष्य आनंद श्रावस्ती पहुंचे l नगर के श्रेष्ठियों ने उनसे पूछा ----- " बुद्धं शरणं गच्छामि ' का अर्थ महात्मा बुद्ध की शरण में जाना होता है क्या ? यदि ऐसा है तो यह क्या महात्मा बुद्ध के अहंकार का द्योतक नहीं ? " आनंद बोले ---- " श्रेष्ठि ! क्या आपको पता है कि जब श्रमण समूह चलता है तो यह सूत्र सभी बोलते हैं , स्वयं भगवान बुद्ध भी l व्यक्ति की शरण में जाने का भाव इसमें होता तो वे स्वयं न दोहराते l " आनंद ने स्पष्ट किया ----- " तथागत का नाम तो सिद्धार्थ था l ज्ञान के प्रकाश का बोध होने पर वे बुद्ध कहलाए l जिस प्रकाश ने उन्हें बुद्ध बनाया , उसी दिव्य -दूरदर्शी विवेक की शरण में जाने का संकेत इस सूत्र में है l "