22 May 2024

WISDOM -------

 संसार  में  आसुरी  और  दैवी  शक्तियों  में  स्रष्टि  के  आरम्भ  से  ही  संघर्ष  चला  आ  रहा  है  l  इस  संघर्ष  की  शुरुआत  परिवार  से  ही  होती  है  क्योंकि  परिवार  से  मिलकर  समाज  बना  , समाज  से  राष्ट्र   और  राष्ट्रों  से  मिलकर  ही  यह  संसार  है  l  एक  परिवार  में  ही  दैवी  और  आसुरी  दोनों  प्रवृत्तियों  के  सदस्य  होते  हैं  l  बुराई  का  मार्ग  सरल  है  और  इसमें  लाभ  भी  बड़ी  तेजी  से  होता  है  l  किसी  परिवार  में   यदि  सब  अपराधिक  गतिविधियों  में  लगे  हैं  और  एक  व्यक्ति   यदि   सरल  है , सन्मार्ग  पर  चलता  है   तो  सब  लोग   उसकी  उपेक्षा  करेंगे    और  साम , दाम , दंड , भेद   हर  तरीके  से  यह  प्रयास  करेंगे  कि  वह  भी  उनके  जैसा  अपराधी  बन  जाये   l  अधिकांशत:  वे  अपने  इस  उदेश्य  में  सफल  भी  हो  जाते  हैं   इसलिए  असुरता  का  साम्राज्य  बड़ी  तेजी  से  बढ़ता  है  l  यदि  कोई  अपनी  सच्चाई  पर  , सन्मार्ग  पर  अडिग  रहे  तो  पापी  उसका  जीना  मुश्किल  कर  देते  हैं  l  इसी  तरह  विभिन्न  परिवारों  में  , संस्थाओं  में  , समाज  में  जब   दैवी  प्रवृत्ति  के  लोगों  पर  अत्याचार  होता  है  ,  सारे  असुर  मिलकर  उन्हें  बुराई  के  दलदल  में  घसीटने  का  प्रयास  करते  हैं   तब   भगवान  शिव  का  तृतीय  नेत्र  खुल  जाता  है  l  विभीषण  असुर  कुल  में  पैदा  होकर  भी  दैवी  प्रवृत्ति  का  था , भगवान  का  भक्त  था  l  रावण  ने  चाहा  कि  विभीषण  उसके  जैसा  ही  बन  जाये   लेकिन  जब  विभीषण  उसे  नेक  सलाह  देता  है  कि  सीता हरण  करना  , श्रीराम  से  बैर  रखना  उचित  नहीं  है  तब  रावण  से  उसे  लंका  से  बाहर  कर  दिया  l  इसी  तरह  दुर्योधन  का  सबसे  छोटा  भाई  विकर्ण  था   उसने  दुर्योधन  की  अनीति  के  विरोध  में  आवाज  उठाई ,  द्रोपदी  के  चीर हरण  के  समय   भी  उसने  विरोध  किया   , बड़ों  को  समझाना  चाहा   लेकिन  उसकी  बात  को  सबने  अनसुना  कर  दिया  l  असुरों  का  भी  परिवार  होता  है   इसलिए  पीढ़ी -दर -पीढ़ी   असुरता  बढ़ती   जाती  है  और   यही  कारण  है  कि  कलियुग  में  यह  चरम   स्तर    पर  पहुँच  गई  l  असुरता  इसलिए  भी  बढ़ती  जाती  है  क्योंकि  शक्तिशाली  होने  के  कारण   क़ानूनी  प्रक्रिया  में  ऐसे  लोग  दंड  से  बड़ी  आसानी  से  बच  जाते  हैं   और  समाज  में  खुलकर  घूमते  हैं  ,  अनेक  छिपे  हुए  अपराधी  हैं  जो  तंत्र , काला  जादू  जैसी  नकारात्मक  शक्तियों  के   बल  पर  लोगों  को  सताते  हैं   वे  कानून  की  नजर  में  ही  नहीं  आते  l  फिर  ईश्वर  के  दरबार  में  भी   पाप -पुण्य  के  लेखा -जोखा  से   काल  निश्चित  करता  है  कि  पापी  को  दंड  कब  मिलेगा  ,  इसमें  भी  बहुत  लंबा  समय  गुजर  जाता  है  , असुर  और  आतंक  मचाते  हैं  l  दु;शासन  ने  भरी  सभा  में  द्रोपदी  का  अपमान  किया  , चौदह  वर्ष  तक  द्रोपदी  अपने  केश  खोले  रहीं  , पापी  को  दंड  मिले  इसका  बहुत  इंतजार  किया   l  चौदह  वर्ष  बाद  जब  महाभारत  हुआ   तब  दु;शासन  को  अपने  किए  की  सजा  मिली  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  द्रोपदी  की  लाज  रखी   लेकिन  पापी  को  दंड  तो   उसका  समय  आने  पर  ही  मिला  l  इस  अवधि  में  दुर्योधन , दु:शासन  ने  और  षड्यंत्र  रचकर  अपने  पाप  के  घड़े  को   अच्छी  तरह  भर  लिया  l  यही  सब   इस  संसार  में  हो  रहा  है  ,  पापियों  को  पता  नहीं  है  कि  वे  अपने  दुष्कर्मों  द्वारा  अपना  ही  पाप  का  घड़ा  भर  रहे  हैं ,  स्वयं  अपना  दुर्भाग्य  लिख  रहे  हैं  l  यदि  शिक्षा  के  आरम्भ  से  ही  बच्चों  को  गीता  के  कर्म-फल  विधान  को  पढ़ाया  , समझाया  जाए  तो  असुरता  में  कमी  होना  संभव  हो  सकता  है  l