5 June 2024

WISDOM -----

 पं .श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "इस  संसार  से  हमने  जो  कुछ  भी  पाया  है  , जिनका  भी  संग्रह  किया  है  , जितना  कुछ  भी  बनाया ----- वे  सभी  चीजें  शरीर  का  अंत  होने  पर  यहीं  रह  जाएँगी  ,  एकमात्र  कर्म  ही  ऐसे  हैं  ,  जो  हमारे  साथ  जाएंगे  l  हमारे  कर्मों  की  श्रेष्ठता  या  निकृष्टता  को   संसार  भले  ही   न  जाने  या  न  पहचाने  ,  लेकिन  हमारे  ह्रदय  में   विराजमान  परमात्मा   हमारे  कर्मों  को   और  उन  कर्मों  के  पीछे  छिपी  भावनाओं  को  अच्छी  तरह  जानते  हैं  l  इस  शरीर  के  माध्यम  से  ऐसे  कर्म  किए  जा  सकते  हैं  ,  जो  इस  शरीर  की  अभिव्यक्ति  को  निखार  सकते  हैं   l  हमारे  अच्छे  कर्म  ही  हमारी  कुरूपता  को   छिपाते  और  सुन्दरता  को   निखारते  हैं  l  कर्म  की  महिमा   अमिट , अनंत  व  अपार  है  l "-------- एक  बार  की  बात  है  विश्व प्रसिद्ध  दार्शनिक  सुकरात   दर्पण  में  अपना  चेहरा  देख  रहे  थे  l  उसी  समय  उनका  शिष्य  उनके  कमरे  में  आया   और    गुरु  को  इस  तरह  दर्पण  देखते  हुए  देखकर   मुस्कराने  लगा  l  सुकरात  ने  शिष्य  को   मुस्कराते  देखा  तो   उसकी  दुविधा  को  भाँप  गए   और  शिष्य  से  बोले ---- " मैं  जान  गया  कि  तुम  क्यों  हँस  रहे  हो  ?  शायद  तुम  सोच  रहे  हो  कि   मुझ  जैसा  कुरूप  व्यक्ति  दर्पण  में   अपना  मुंह  क्यों  देख  रहा  है  ? "  शिष्य  अपनी  गलती  पकड़ी  जाने  से  लज्जित  हुआ  l  सुकरात  ने  उसे  यह  रहस्य  बताया  और  कहा --- "  मैं  कुरूप  हूँ  इसलिए   रोज  शीशा  देखता  हूँ  l  ताकि  इसे  देखकर  मुझे   अपनी  कुरूपता  का  एहसास  रहे   इसलिए  मैं  हर  रोज  कोशिश  करता  हूँ   कि  ऐसे  अच्छे  कर्म  करूँ  ,  जिनके  नीचे  मेरी  यह  कुरूपता   ढक  जाए  l  मेरे  कर्म  मुझसे   बड़े  बन  जाएँ  l "     इस  पर  शिष्य  ने  जिज्ञासा  प्रकट  की  ---- " तो  क्या  सुन्दर  लोगों  को  कभी   दर्पण  नहीं  देखना  चाहिए  ?  "   सुकरात  ने  समझाया ---- "   सुन्दर  लोगों  को  भी  दर्पण  अवश्य  देखना  चाहिए  ,  ताकि  उन्हें   ध्यान  रहे  कि  जितने  वे  सुन्दर  हैं  ,  उतने  ही  सुन्दर  काम  भी  करें    वरना  उनके  बुरे  काम   उनकी  सुन्दरता  कम  कर  देंगे   l "