18 June 2024

WISDOM ----

    एक  बार  महाराजा  पुरंजय  ने  राजसूय  यज्ञ   का  आयोजन  किया  l  इसमें  उन्होंने  दूर -दूर  से   ऋषि -मुनियों  को  आमंत्रित  किया  l  प्रजा   के  सुख  के  उदेश्य  से   आयोजित  यज्ञ  में   विधि -विधान  से   आहुतियाँ  दी  जाने  लगीं  l  यज्ञ  की  पूर्णाहुति  का  दिन  आया  l महाराज , महारानी , राजकुमार   सभी  यज्ञ  मंडप  में  विराजमान  थे  l  वेड मन्त्रों  की  ध्वनि  से  वातावरण  गुंजित  हो  रहा  था  l  अचानक  एक  किसान  के  रोने  की  आवाज  सुनाई  दी  l  वह  रोते  हुए  कह  रहा  था  ---- " डाकुओं  ने  मेरी   संपत्ति  लूट  ली  l  मेरी  गाय   छीनकर    ले  गए  l  डाकू  अभी  थोड़ी  ही  दूर  गए  होंगे   l  राजा  तुरंत  उनको  पकड़कर   मेरी  संपत्ति  दिलाएं   l "    पंडितों  ने  कहा ---- "  इस  व्यक्ति  को  दूर  ले  जाओ   l  यदि  राजा  इस  पर  दया  करके   पूर्णाहुति   किए  बिना   उठ  गए   तो  देवता  कुपित   हो  जाएंगे  l  "  लेकिन  किसान  का  रुदन  सुनकर  राजा  के  ह्रदय  में  करुणा   जाग  उठी   , वे  बोले  ---- " मेरा  पहला  कर्तव्य   प्रजा  का  संकट  दूर  करना  है  l  मैंने  अनेक  यज्ञ  पूर्ण  किए  हैं  l  आज  मैं  पहली  बार  यज्ञ  पूर्ण  किए  बिना   अपने  राज्य  के  किसान  का   संकट  दूर  करने  जा  रहा  हूँ  l  "  राजा  के  यह  कहने  पर  साक्षात्  यज्ञ  भगवान  प्रकट  हुए   और  बोले  ---- "  राजन  !  तुम्हे  कहीं  जाने  की  आवश्यकता  नहीं   है  l   यह  तुम्हारी  परीक्षा  थी  कि  तुम   अपनी  प्रजा  के  प्रति  कर्तव्यपालन   करते  हो  या  नहीं   l  अब  आपको  सौ   राजसूय  यज्ञ  का  फल  मिलेगा   l  "