6 July 2024

WISDOM------

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " सार्थकता  स्व -सृजन  में  है  , परचर्चा , परनिंदा  में  नहीं  l  दूसरों की  निंदा  में  खर्च  किया  जाने  वाला  समय   अपने  दोष  ढूँढने  में  लगाओ  l  दूसरों  को  सुधारने  के  लिए  प्रयत्न  करने  का  पहला  चरण   अपने  सुधार  से  आरम्भ  करो   l  "    गोस्वामी  जी  कहते  हैं ----पर  निंदा  से  बढ़कर  कोई  पाप  नहीं   l  वे  कहते  हैं  कि  निंदा  हिंसा  से  भी  बढ़कर  है  l  जिसके  भी  दोषों  का  हम  चिन्तन  करते  हैं  , हमारा  मन  उससे  तदाकार  हो  जाता  है   l  उसके  दोष  भी  हमारे  अन्दर  आ  जाते  हैं  l  चित्त  में  विकृति  का  अंधकार  बढ़ता  चला  जाता  है  l  ' -----  संत  गंगा  किनारे  बैठकर  ध्यान  कर  रहे  थे   l  आरती  में  अभी  समय  था  l  दो  -चार  शिष्य  बैठकर  प्रपंच  करने  लगे  l  प्रपंच  अर्थात  व्यर्थ  की  बकवास  --- इसकी  निंदा  , उसकी  हँसी  उड़ाना  l  जैसे  ही  वे  गुरु  के  पास  आए   तो  गुरु  ने  कहा ---- " तुम  हमें  छूना  मत  !  तुम  लोग  चांडाल  हो  गए  हो  l  अभी -अभी  तो  तुम  बुराई  कर  रहे  थे  l  संन्यासी  होकर  प्रपंच   में  उलझना  ठीक  नहीं  है  l   संसारी  लोगों  की  तरह  मत  रहो  l  जाओ , गंगा  में  नहाओ  l  गंगाजल  हाथ  में  लेकर  संकल्प  लो  ,  फिर  हमें  प्रणाम  करना  और  आरती  में  भाग  लेना  l  "