14 July 2024

WISDOM -----

   सुप्रसिद्ध  दार्शनिक  जानजे  से  उनके  एक  मित्र  ने  पूछा  ---- " मित्र  !  दुनिया  में  इतनी  अराजकता  फैली  हुई  है  l  यदि  यह  दुनिया  भगवान  की  बनाई  हुई  है   तो  वह  दुनिया  की  व्यवस्था  ठीक  क्यों  नहीं  करता   ? "    जानजे  ने  उत्तर  दिया ----- " मित्र  !  हमारा  कार्य   अपने  कर्तव्य  का  ईमानदारी  से  पालन  करना  है   और  भगवान  का  कार्य  संसार  की  व्यवस्था  देखना  है   l  हमें  हमारा  कार्य   ईमानदारी  से  करना  चाहिए   और  भगवान  का  कार्य  भगवान  पर  छोड़  देना  चाहिए  l  "   यदि  हर  व्यक्ति  ईमानदारी  से   उसको  दिए  गए   दायित्वों  की  पूर्ति  सही  ढंग  से  करता    रहे   तो  संसार  में  सुव्यवस्था  स्वत:  आ  जाएगी   l    आज  संसार  में   इतनी  अव्यवस्था , असंतोष , तनाव  , अशांति   है  , इसका   एकमात्र  कारण  यही  है  कि  हर  व्यक्ति  बड़ी  तेजी  से  अमीर  और  अमीर ---- होना  चाहता  है   और  अति  की  संपदा , अमीरी ,    ईमानदारी  से  तो  आ  नहीं  सकती  l  अपनी  महत्वाकांक्षाओं  और  असीमित  इच्छाओं  को  पूरा  करने  के  लिए  वह  उचित -अनुचित  सभी  तरीके  अपनाता  है   l  इसके  लिए  वह  केवल  दूसरों  का  ही  नहीं , अपनों  का  भी  शोषण  करने  से  नहीं  चूकता   l  ईश्वर  ने  मनुष्य  को  अपनी  राह  चुनने  की  स्वतंत्रता  दी  है  l  जैसी  सही  या  गलत  जो  भी  राह  व्यक्ति  चुनेगा  वैसी  ही  परिणाम  उसको  मिलेगा  l  यह  मनुष्य  का  दुर्भाग्य  है  कि  दुर्बुद्धि  के  कारण  वह   अनीति  की  राह  चुनता  है   और  जब  उसका    फल  भोगता  है  तो  दूसरों  को  और  ईश्वर  को  कोसता  है  l  

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " आकर्षक  व्यक्तित्व  का  निर्माण   शक्ति  और  संवेदना  के  सम्मिश्रण  से  होता  है  l  इन  दोनों  तत्वों  का  समन्वय  जहाँ -जहाँ  जितनी  भी  मात्र  में  होगा  , वहां  पर  उसी  के  अनुरूप  व्यक्तित्व  आकर्षक  और  चुंबकीय   होता  चला  जायेगा  l  संवेदना विहीन  अकेली  शक्ति   व्यक्ति  को  अहंकारी  और  निष्ठुर  बना  देती  है    और  व्यक्ति  यदि   केवल  संवेदनशील  है   उसमें  द्रढ़ता  व  शक्ति  नहीं  है   तो  लोग  उसे   'बेचारा  और  दया  का  पात्र  '  समझते  हैं  l  इसलिए  अपने  व्यक्तित्व  को  आकर्षक  बनाने  के  लिए  अपनी   शक्ति  व  क्षमताओं  को  संवेदनाओं  से  युक्त  कीजिए   l '    आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---   'सद्गुणों  से  और  श्रेष्ठ  विचारों  से  व्यक्ति  मानसिक  स्तर  पर  क्षमतावान  बनता  है   l  दुर्गुणी जनों  को  भी   आकर्षक  बनने  के  लिए   सद्गुणों  की  कलई  चढ़ानी  पड़ती  है    लेकिन  यह  कलई  उतरते  ही   उनकी  बड़ी  फजीहत   होती  है  l  "