9 April 2013

PURE MEAL

आहार शुद्ध होने से अंत:कारण की शुद्धि होती है और इससे विवेक -बुद्धि ठीक काम करती है | आहार के संबंध में तीन शब्द कहे जाते हैं --हित ,मित और ऋत |
हितभोजी वह है ,जो स्वास्थ्य के अनुकूल एवं उपयोगी पदार्थ ग्रहण करता है | ऐसा व्यक्ति स्वाद के लिये नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिये खाता है | मितभोजी वह है ,जो थोड़ा खाता है ,जितना आवश्यक है उतना खाता है | आहार के संबंध में तीसरा सबसे महत्वपूर्ण शब्द है -ऋत | --ऋत का संबंध पवित्रता एवं चेतना की निर्मलता से है | ऋत का अर्थ भोजन में समाई भावनाओं में निहित है | भोजन बनाने वाले की भावनाएं क्या हैं ?इसलिये इस भोजन को वही खा सकता है ,जो मुफ्त की नहीं खाता | दूसरों का शोषण नहीं करता | दूसरों की आह ,दूसरों का हक छीनकर ,कष्ट देकर जो भोजन हमारे पेट में जाता है ,वह हमारी भावनाओं को विकृत बनाता है ,इसी के परिणामस्वरूप शारीरिक कष्ट और असाध्य रोग उत्पन्न होते हैं |
वस्तुत:आहार का मूल्यांकन चेतना के विकास का मूल्यांकन है | ऋत आहार का स्वरुप ही हमारी चेतना को विकृत या परिष्कृत करता है | 

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