' प्रकृति ही ईश्वर है ' मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए , अपनी सुख -सुविधाओं और भोग -विलास के लिए प्रकृति को ही प्रदूषित कर दिया l समय -समय पर प्रकृति संकेत देती है , चेतावनी देती है कि अपनी जीवन शैली को सुधारो l लेकिन मनुष्य जिद्दी और अहंकारी है l युद्ध ,दंगे , अक्षम्य अपराध , नकारात्मक और अंधकार की शक्तियों के प्रयोग से मनुष्य ने धरती , आकाश , पाताल और दसों दिशाओं को प्रदूषित कर दिया l सहन शक्ति की भी कोई सीमा होती है l जब प्रकृति को क्रोध आ जाता है तो वर्षों का विकास एक पल में धराशायी हो जाता है l कितनी ही सभ्यताएं धरती के गर्भ में समा गईं लेकिन मनुष्य इतिहास से शिक्षा ही नहीं लेता और अपनी गलतियों से स्वयं ही आपदाओं को आमंत्रित करता है l जैसा भी नुकसान हुआ , उस पर कुछ दिन शोक मना लिया , सबसे सरल उपाय क्षमा मांग ली और फिर से अपनी गलतियों को नए सिरे से दोहराने के लिए तैयार हो गए l यह चक्र चलता ही रहता है l जब मनुष्य की चेतना जाग्रत होगी तभी वह इस चक्र से बाहर निकल सकेगा l समस्या यही है कि यह चेतना कैसे जाग्रत हो ? विभिन्न धर्मों में अनेक मन्त्र हैं लेकिन चेतना को परिष्कृत करने वाला , इस विषम चक्र से मुक्त करने वाला केवल एक ही मन्त्र है ----' गायत्री मन्त्र ' l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं --- इस महामंत्र को जपने की शुरुआत तो करो , शेष काम माँ स्वयं करा लेंगी l