10 April 2025

WISDOM ------

  ' प्रकृति  ही  ईश्वर  है  '  मनुष्य  ने  अपने  स्वार्थ   के  लिए  , अपनी  सुख -सुविधाओं  और  भोग -विलास  के  लिए   प्रकृति  को  ही  प्रदूषित  कर  दिया  l  समय -समय  पर  प्रकृति  संकेत  देती  है  , चेतावनी  देती  है  कि  अपनी  जीवन  शैली  को  सुधारो  l  लेकिन  मनुष्य  जिद्दी  और  अहंकारी  है  l  युद्ध ,दंगे , अक्षम्य  अपराध , नकारात्मक  और  अंधकार  की  शक्तियों  के  प्रयोग  से  मनुष्य  ने   धरती , आकाश , पाताल  और  दसों  दिशाओं  को  प्रदूषित  कर  दिया  l   सहन  शक्ति  की  भी  कोई  सीमा  होती  है  l  जब  प्रकृति  को  क्रोध  आ  जाता  है  तो  वर्षों  का  विकास  एक  पल  में  धराशायी  हो  जाता  है  l  कितनी  ही  सभ्यताएं  धरती  के  गर्भ  में  समा  गईं   लेकिन  मनुष्य  इतिहास  से   शिक्षा  ही  नहीं  लेता   और  अपनी  गलतियों  से  स्वयं  ही  आपदाओं  को  आमंत्रित  करता  है  l   जैसा  भी  नुकसान  हुआ   , उस  पर  कुछ  दिन  शोक   मना  लिया  ,  सबसे  सरल  उपाय  क्षमा  मांग  ली   और  फिर  से   अपनी  गलतियों  को  नए  सिरे  से  दोहराने  के  लिए  तैयार  हो  गए  l  यह  चक्र  चलता  ही  रहता  है  l  जब  मनुष्य  की  चेतना  जाग्रत  होगी   तभी  वह  इस  चक्र  से  बाहर  निकल  सकेगा  l  समस्या  यही  है  कि  यह  चेतना  कैसे  जाग्रत  हो  ?   विभिन्न  धर्मों  में  अनेक  मन्त्र  हैं   लेकिन  चेतना  को  परिष्कृत  करने  वाला  ,  इस  विषम  चक्र  से  मुक्त  करने  वाला  केवल  एक  ही  मन्त्र  है  ----' गायत्री  मन्त्र  '   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  कहते  हैं  --- इस  महामंत्र  को  जपने  की  शुरुआत  तो  करो  , शेष  काम  माँ  स्वयं  करा  लेंगी  l