11 July 2025

WISDOM -----

समाज  में  अशांति  का  एक  बहुत  बड़ा  कारण  समाज  में    व्याप्त  कुरीतियाँ  और  अन्धविश्वास  हैं  l  लोग  कितना  भी  पढ़ -लिख  जाएँ  , स्वयं  को  आधुनिक   होने  का  दावा  करें   लेकिन  यह  दावा  सिर्फ   उनके  स्वयं  उनके  लिए  ही  होता  है  , वे  चाहे  जो  करें   लेकिन  जहाँ  परिवार  के   अन्य    सदस्यों  और  समाज  की  बात  आती  है   , ऐसे  लोग  परम्पराओं , कुरीतियों  और  अंधविश्वासों  से  अलग  नहीं  हो  पाते  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं  -- हमारी  वृत्ति  हंस  जैसी  हो ,   जो  श्रेष्ठ  है  उसे  स्वीकार  करो  l  यह  भी  दुर्बुद्धि  का  ही  प्रकोप  है  कि  मनुष्य  अपनी  अधिकांश  ऊर्जा  जाति -पांति , छुआछूत , ऊँच -नीच ,  धार्मिक  भेदभाव    जैसे  मुद्दों  पर  अपने  अहंकार  को  पोषित  करने  में  व्यर्थ  गँवा  देता  है  l   यदि  मनुष्य  को  सद्बुद्धि  आ  जाए   और  वह  अपनी  ऊर्जा  का  सही  उपयोग  करना  सीख  जाए   तो  वह  स्वयं  का  जीवन  भी  सफल  कर  सकता  है   और  धरती  माँ  को  भी  अपने  सिर  पर  होने  वाले  खून -खराबे  से  राहत  मिल  जाएगी  l    आज  संसार   को   महर्षि  दयानंद  सरस्वती  के  विचारों  और  उनके  जैसे  व्यक्तित्व  की  जरुरत  है  l  वे  हर  प्रकार  के  आडम्बर  और  कुरीतियों  के  विरुद्ध  थे  l  महर्षि  दयानंद  मानते  थे  कि  हमारा  नाम  आर्य  है  l  आर्य  का  अर्थ  है  श्रेष्ठ  पुरुष  l  विदेशियों  ने  हमें  हिंदू  नाम  दिया  l  आर्यों  का  संस्कृत  भाषा  में  साहित्य   ही  संसार  का  सबसे  पुराना  साहित्य  है  l  महाभारत  के   उद्योग  पर्व  में  महात्मा  विदुर  धृतराष्ट्र  से  कहते  हैं ---- " हे  राजन  !  इस  संसार  में   दूसरों  को  निरंतर  प्रसन्न  करने  के  लिए  प्रिय  बोलने  वाले  प्रशंसक  लोग  बहुत  हैं  ,  परन्तु    सुनने  में  अप्रिय  लगे   और  वह  कल्याण  करने  वाला  वचन  हो  ,  उसका  कहने  और  सुनने  वाला   पुरुष  दुर्लभ  है  l "   महर्षि  दयानंद  ऐसे  ही  हितकारक  वचन  कहने  वाले  विरले  मनुष्य  थे  l  वे  राजाओं -महाराजाओं  और  बड़े -से -बड़े  अंगरेज  अफसरों  की  उपस्थिति  में  भी  निर्भीक  होकर  सबके  हित  की  सत्य  बात  कहा  करते  थे  l   महर्षि  दयानंद  कहते  थे  ---- " मेरा  काम  लोगों  के  मन -मंदिर   से  मूर्तियाँ  निकलवाना  है  ,  ईंट -पत्थर  के  मंदिरों  को  तोड़ना -फोड़ना  नहीं  है  l "   फर्रुखाबाद  में  एक  दिन  एक   ' साध ' ( निम्न  जाति  का  व्यक्ति )   स्वामी जी  के  लिए  कढ़ी  और  चावल  बनाकर  लाया   और  उन्होंने  उसे  खा  लिया  l  इस  पर  ब्राह्मणों  ने  कहा ---- " आप  भ्रष्ट  हो  गए  ,  जो  ' साध '  के  घर  का  भोजन  कर  लिया  l "    स्वामीजी  ने  उत्तर  दिया  ---- " भोजन  दो  प्रकार  से  भ्रष्ट  होता  है  --एक  तो  यदि  किसी  को  दुःख  देकर  धन  प्राप्त  किया  जाए  और  उससे  अन्न  आदि  खरीदकर   भोजन  बनाया  जाए  ,  दूसरा   भोजन  मलिन  हो  या  उसमें  कोई  मलिन  वास्तु  गिर  जाए  l  ,साध '  लोगों  का  मेहनत  का  पैसा  है  ,  उससे  प्राप्त   किया  हुआ  भोजन  उत्तम  है  l  "  ' सत्यार्थ प्रकाश  ' उनकी  प्रसिद्ध  कृति  है  l