12 July 2018

WISDOM ------ आततायी और अहंकारी के विनाश का विधान भगवान स्वयं रच देते हैं

 कहते  हैं  ईश्वर  जिस  पर कृपा  करते  हैं  उसे  सद्बुद्धि  देते  हैं  , विवेक  देते  हैं   लेकिन  जो  अहंकारी  है ,  अत्याचारी  है  , उसके  दुर्गुणों  की  वजह  से  उसकी  बुद्धि ,  दुर्बुद्धि   में  बदल  जाती  है   और  वह  स्वयं   अपने   विनाश  के  लिए  उत्तरदायी  होता  है  l
     एक  प्रसंग  है ----- राम , रावण  के  युद्ध  से  पहले  ब्रह्मा जी  ने  श्रीराम  से  कहा  था   कि  इस  युद्ध   में  आपको  विजयश्री  का  वरदान  आदिशक्ति  देवी  चंडी  से  प्राप्त  करना   होगा  l   इस  हेतु   उन्हें  प्रसन्न  करने  के  लिए  चंडी  पूजन  और  चंडी  यज्ञ  का  आयोजन  करें  , इस  हवन   में  एक  सौ  आठ  नील कमलों   की  आवश्यकता  पड़ेगी  l   भगवान  राम  ने   ऐसा  करने  का  संकल्प  लिया  l  लक्ष्मण  ने  देवताओं  की  मदद  से    दुर्लभ   नीलकमल  की  व्यवस्था  की  l  मायावी  रावण    को  यह  गुप्त  रहस्य  पता  चल  गया   और  उसने  एक  नीलकमल  गायब  कर  दिया   l  हवन  का  विशिष्ट  क्षण  समाप्त  होने  को  था  ,  इसने  कम  समय  में  नीलकमल  की  व्यवस्था  कर  पाना  असंभव  था  l   भगवान  राम  को  विदित  था  कि  उनकी  आँखों  को  ' कमलनयन '  ' नवकंजलोचन '  की  संज्ञा  दी  जाती  है  l  अत:  वे  नीलकमल  के  स्थान  पर  तीर  से  अपनी   आँख  निकाल्ने  को    तत्पर  हुए  ,  उसी  समय  देवी  चंडी  प्रकट  हुईं   और  भगवान  राम  को  विजयश्री  का  आशीर्वाद  दिया  l   
   इधर  रावण  ने  भी  विजयश्री  के  लिए  चंडी  पाठ  प्रारंभ  किया  l  अनेकों  ब्राह्मण   विधि - विधान  से  इसे  संपन्न  करने  में  लगे  थे  l  एक  ब्राह्मण  बालक  इन  पाठ  कर  रहे  ब्राह्मणों  की  सेवा  में   कटिबद्ध  रहता  था    l  उसकी  निस्स्वार्थ  सेवा  से  प्रसन्न  होकर    ब्राह्मणों   ने  उसे  वरदान  मांगने  को  कहा  l  बालक  ने  कहा  कि  मेरी  इच्छा  है  कि  यज्ञ  में  प्रयुक्त  एक  शब्द   मूर्तिहरिणी  के  ' ह '  अक्षर  के  स्थान  पर  'क '  उच्चारित  किया  जाये  l    ' विनाशकाले  विपरीत  बुद्धि  '     रावण   स्वयं  प्रकांड  विद्वान्  था    लेकिन  वे  सब   इस  गूढ़ार्थ  को  समझ  न  सके   और  बालक  के  कहे  अनुसार  ' मूर्तिहरिणी '  के  स्थान  पर
 '  मूर्तिकरिणी ' कह  कर  आहुतियाँ  डालने  लगे   l         ' मूर्तिहरिणी '  का  अर्थ  होता  है --- प्राणियों  की  पीड़ा  हरने  वाली   और  ' मूर्तिकरिणी ' का  अर्थ  होता  है --- प्राणियों  को  पीड़ित   करने  वाली  l
  इस  विकृत  मन्त्र  के  प्रभाव  से  देवी  अत्यंत  क्रोधित  हुईं   और  रावण  को  ' सर्वनाश ' का  अभिशाप  दिया  l    कहते  हैं  वह  बालक  स्वयं  हनुमानजी  थे   l 

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