प्राय: दुश्चिंताओं का कोई आधार नहीं होता । केवल किसी अस्पष्ट की आशंका व्यक्ति को अस्वस्थ कर देती है । चिंता से बढ़कर , आज के मनुष्य का कोई बड़ा शत्रु नहीं हो सकता । चिंता करने वाले व्यक्ति को जीवन के महत्वपूर्ण कार्य करने वाला समय ही नहीं मिलता है । उसका सारा समय तो व्यर्थ की उधेड़ -बुन में ही चला जाता है । हमारी चिंता का एक बड़ा कारण यह है कि हम चाहते हैं कि दूसरे सदा हमारे बारे में चिंतित रहें और जब वे ऐसा नहीं करते , तब हम स्वयं चिंतित हो जाते हैं । इसका उपाय सिर्फ एक ही है - हम सदैव अपने को कार्य में व्यस्त रखें ।
चर्चिल प्रतिदिन 18 घंटे कार्य करते थे । एक बार उनसे यह पूछा गया --" इतनी अधिक जिम्मेदारियों से आपको चिंता नहीं होती ? " उत्तर में उनने कहा -" मेरे पास समय ही कहां है कि मैं चिंता करूं । "
वास्तव में चिंता व्यक्ति को तभी होती है , जब वह खाली बैठा होता है , उसके पास करने के लिये कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं होता । ऐसे खाली समय में वह अपनी परेशानियों , समस्याओं के बारे में सोचकर चिंता करने लगता है ।
जिस काम को करने में जुझारूपन और सोच -विचार की आवश्यकता हो , उस कार्य को करते समय चिंता नहीं रहती है ।
" व्यस्त रहो - मस्त रहो । "
कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखने वाला व्यक्ति ही जीवन की सार्थकता को , आराम करने के सुकून को व आंतरिक संतुष्टि को महसूस कर सकता है ।
जो जीवन को सच्चिंतन और सत्कर्मों में लगाते हैं , वे न केवल व्यस्त रहते हैं , बल्कि आंतरिक और बाह्य रूप से इतने आनंदमय रहते हैं कि उनके संपर्क में आने वाले भी अपनी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं ।
चर्चिल प्रतिदिन 18 घंटे कार्य करते थे । एक बार उनसे यह पूछा गया --" इतनी अधिक जिम्मेदारियों से आपको चिंता नहीं होती ? " उत्तर में उनने कहा -" मेरे पास समय ही कहां है कि मैं चिंता करूं । "
वास्तव में चिंता व्यक्ति को तभी होती है , जब वह खाली बैठा होता है , उसके पास करने के लिये कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं होता । ऐसे खाली समय में वह अपनी परेशानियों , समस्याओं के बारे में सोचकर चिंता करने लगता है ।
जिस काम को करने में जुझारूपन और सोच -विचार की आवश्यकता हो , उस कार्य को करते समय चिंता नहीं रहती है ।
" व्यस्त रहो - मस्त रहो । "
कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखने वाला व्यक्ति ही जीवन की सार्थकता को , आराम करने के सुकून को व आंतरिक संतुष्टि को महसूस कर सकता है ।
जो जीवन को सच्चिंतन और सत्कर्मों में लगाते हैं , वे न केवल व्यस्त रहते हैं , बल्कि आंतरिक और बाह्य रूप से इतने आनंदमय रहते हैं कि उनके संपर्क में आने वाले भी अपनी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं ।
No comments:
Post a Comment