' श्रम एक बहुत महत्वपूर्ण विभूति है । यह एक ऐसी कुदाल है , जिसके माध्यम से हम अपने व्यक्तित्व की विभूतियों को खोद सकते हैं । '
जीवन प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष है । इसे जानने , समझने व हस्तगत करने के अलावा और किसी भी चीज की जरुरत नहीं । यदि हमें स्वयं को समझना है , जानना है , तो सबसे पहले हमें अपने जीवन के नजदीक आना होगा । अपने भीतर की संभावनाओं को निखारने के लिये सबसे महत्वपूर्ण है --श्रम
श्रम से हमें यह अहसास होता है कि हम जीवित हैं । जो श्रम नहीं करता , वह मुर्दे के समान है ।
श्रम से ही व्यक्ति स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है ।
श्रम के संदर्भ में विशेष बात यह है की भावना और मनोयोग तथा बुद्धि और विवेक के साथ किया गया श्रम ही हमारे व्यक्तित्व को निखार देता है ।
यह श्रम तब और भी व्यापक एवं अध्यात्मिक बन जाता है और व्यक्तित्व की प्रगति के द्वार खोलता है , जब श्रम सेवा में तब्दील हो जाता है । जब हम सेवा के माध्यम से श्रम करते हैं तो हम निजी जीवन को और अपने व्यक्तित्व को व्यापक व प्रगतिशील बनाते हैं ।
जीवन प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष है । इसे जानने , समझने व हस्तगत करने के अलावा और किसी भी चीज की जरुरत नहीं । यदि हमें स्वयं को समझना है , जानना है , तो सबसे पहले हमें अपने जीवन के नजदीक आना होगा । अपने भीतर की संभावनाओं को निखारने के लिये सबसे महत्वपूर्ण है --श्रम
श्रम से हमें यह अहसास होता है कि हम जीवित हैं । जो श्रम नहीं करता , वह मुर्दे के समान है ।
श्रम से ही व्यक्ति स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है ।
श्रम के संदर्भ में विशेष बात यह है की भावना और मनोयोग तथा बुद्धि और विवेक के साथ किया गया श्रम ही हमारे व्यक्तित्व को निखार देता है ।
यह श्रम तब और भी व्यापक एवं अध्यात्मिक बन जाता है और व्यक्तित्व की प्रगति के द्वार खोलता है , जब श्रम सेवा में तब्दील हो जाता है । जब हम सेवा के माध्यम से श्रम करते हैं तो हम निजी जीवन को और अपने व्यक्तित्व को व्यापक व प्रगतिशील बनाते हैं ।
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