वृक्ष ने पथिक से कहा --- " तुम जितनी बार पत्थर मारोगे , उतनी ही बार मैं उपहार में फल दूंगा l यह तो मेरा व्रत है l पत्थर का उत्तर पत्थर से देना मुझे नहीं आता , भले ही मुझे कितना ही कष्ट क्यों न हो l " पथिक ने कुढ़कर कहा --- " तुम यों फलो -फूलो और मैं भूखा फिरु, क्या यह तुम्हारा और तुम्हारे भगवान का अन्याय नहीं l " वृक्ष ने हँसकर कहा --- " ईर्ष्या क्यों करते हो पथिक ! मेरे पतझड़ के कष्टों को देखते तो पता चलता कि यह फल मैंने कितनी तपस्या कर प्राप्त किए हैं ? तू भी वैसा ही पुरुषार्थ कर देखो l " सत्य है किसी को सफल होते देख उससे ईर्ष्या करने वालों की कमी नहीं है l लोग सफल व्यक्ति को देखकर जलते भी हैं और उसे नीचे गिराने का हर संभव प्रयत्न भी करते हैं l सफलता प्राप्त करने के लिए उसने जो त्याग और तपस्या की , कठिन संघर्ष किया , उससे प्रेरणा लेकर वे स्वयं सफल होने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करते l अब लोग शार्ट कट से सफल होना चाहते हैं लेकिन गलत तरीके से प्राप्त सफलता में कोई सुकून व आनंद नहीं होता , हमेशा गिरने का भय सताता रहता है l