8 August 2025

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  ' प्रेरणाप्रद  द्रष्टान्त  ' में   छोटी -छोटी  कथाओं  और  प्रसंगों  के  माध्यम  से    हम  सभी  को  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l  उनके  विचार  हमें  पलायन  करना  नहीं  सिखाते  l  उन्होंने  अपने  साहित्य  के  माध्यम  से  यही  सिखाया  कि  कैसे  संसार  में  रहते  हुए  , गृहस्थ  जीवन   जीते  हुए  एक  योगी  की  भांति  जीवन  जिया  जा  सकता  है  l  यदि  मनुष्य  का  मन  संसार  में  है  , ऐसे  में  उसका  एकांत  में  रहना , हिमालय  पर  जाना  व्यर्थ  है  l  मन  पर  नियंत्रण  जरुरी  है  और  वह  भी  स्वेच्छा  से  , जबरन  नहीं  l ----------- सम्राट   पुष्यमित्र  का  अश्वमेध  यज्ञ   संपन्न  हुआ  l  दूसरी   रात  अतिथियों  की  विदाई  के  उपलक्ष्य  में    नृत्य -उत्सव    रखा  गया  l  महर्षि  पतंजलि  भी  उस  उत्सव  में  सम्मिलित  हुए  l  महर्षि  के  शिष्य  चैत्र  को   उस  आयोजन  में  महर्षि  की  उपस्थिति   अखर    रही  थी  l  उसके  मन  में  लगातार  यह  विचार  आ  रहे  थे  कि  महर्षि   तो  संयम , यम नियम    ----- योग  की  शिक्षा  देते  हैं   और  स्वयं   नृत्य -संगीत    देख  रहे  हैं  l  उस  समय  तो  चैत्र  ने   कुछ  नहीं  कहा  ,  पर  एक  दिन  जब  महर्षि  ' योग दर्शन  '  पढ़ा  रहे  थे   तब  चैत्र  ने   उनसे  कहा ---- "  गुरुवर  !  क्या  नृत्य -गीत  के  रास -रंग  चितवृत्तियों   के  निरोध  में  सहायक  होते  हैं   ?  "  महर्षि  ने  शिष्य  का  अभिप्राय  समझा   और  कहा  --- " सौम्य  !   आत्मा  का  स्वरुप  रसमय  है  l  उसमें  उसे  आनंद  मिलता  है  और  तृप्ति  भी   l  वह  रस  विकृत  न  होने  पाए   और  अपने  शुद्ध  स्वरूप  में  बना  रहे  ,  इसी  सावधानी  का  नाम  संयम  है   l   विकार  की  आशंका  से  रस  का  परित्याग   कर  देना  उचित  नहीं   l  क्या  कोई  किसान  पशुओं  द्वारा  खेत  चर   लिए  जाने  के  भय  से   कृषि  करना  छोड़  देता  है  ?   रस  को  नहीं  उसकी  विकृति  को  हेय    माना  जाता  है  l "