28 February 2013

संसार की प्रत्येक वस्तु गुण -दोषमय है | मानव जीवन सुख -दुःख ,लाभ -हानि ,संपति और विपति के ताने -बाने से बना हुआ है | यह दोनों ही रात -दिन की तरह आते रहते हैं | संसार में बुराई और भलाई दोनों ही पर्याप्त मात्रा में हैं ,हम अपनी आन्तरिक स्थिति के अनुसार ही उसे पकड़ते हैं | यदि हम विवेकशील हैं तो संसार में जो कुछ श्रेष्ठ है उसे ही पकड़ने के लिये प्रयत्न करेंगे | जिस प्रकार हंस के सामने पानी और दूध मिलाकर रखा जाये तो वह केवल दूध ही ग्रहण करेगा और पानी छोड़ देगा ,मधुमक्खी फूलों में से केवल मिठास ही चूसती है शेष अन्य स्वादों का जो बहुत सा पदार्थ फूलों में भरा है उसे व्यर्थ समझकर छोड़ देती है | एक वैद्द्य पारद को लेकर बहुमूल्य रसायन बनाता है जिससे अनेक व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ करते हैं दूसरी ओर उसी पारद को खाकर कोई व्यक्ति आत्म -घात कर लेता है | परमात्मा ने गुण -दोषमय विश्व की इस प्रकार की अनोखी संरचना मनुष्य की विवेक की परीक्षा करने के लिये ही की है ताकि विवेक रूपी मणि के प्रकाश में हम गुणों को ,श्रेष्ठता को ग्रहण करें इसी में मानव जीवन की सार्थकता है |

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