17 March 2013

उस धन से क्या लाभ ,जो याचक को नहीं दिया जाता ,उस बल से क्या ,जो शत्रु को रोक न सके ,उस ज्ञान से क्या ,जो आचरण में न आ सके और उस आत्मा (व्यक्ति )से क्या जो जितेंद्रिय न बन सके |
कारूँ को अल्लाह ने बहुत बढ़ा खजाना दिया | कहा -इस दौलत को नेकी में खर्च कर | 'कारूँ दौलत पाकर फूला न समाया | उसने दौलत को बेहिसाब उड़ाना आरम्भ किया ,राग -रंग ,ऐशो -आराम में नष्ट करने लगा | खजाना खर्च होने लगा | एक दिन जमीन हिली और कारूँ का महल मय दौलत के उसमे फंस गया | बची दौलत का थोड़ा सा ही हिस्सा मिल जाये ,यह सोच कर उसने आवाज लगाई | कोई भी नहीं आया | खुदा के कहर से उसे निजात नहीं मिली | कारूँ की तरह रातों -रात अमीर बनने वालों ने इससे एक सीख ली और सोचा कि अल्लाह की मरजी पर अपनी मरजी नहीं रखनी चाहिये | परमात्मा की विभूतियाँ सद उद्देश्य के  लिये हैं ,उनका दुरूपयोग विनाशकारी ही होता है |

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