17 April 2013

GENEROUS

'आदमी चाहे तो थोड़े में गुजर कर सकता है | सुखी बन सकता है और महान कार्यों के लिये समय निकाल सकता है | '
                 संत रामदास अपने शिष्यों के साथ धर्म प्रचार के लिये जा रहे थे | रास्ते में निर्जन प्रदेश पड़ा ,दूर तक कोई गांव दिखाई नहीं देता था | भोजन की समस्या उत्पन्न हुई ,तो उन्होंने कहा -जो कुछ तुम्हारे पास है ,उसे इकट्ठा कर लो और मिल बांटकर खाओ | शिष्यों के पास कुल मिलाकर पांच रोटी और दो टुकड़े तरकारी थी | शिष्यों ने उसे भरपेट खाया और जो भूखे भिखारी उधर से निकले ,वे भी उसी से तृप्त हो गये | एक शिष्य ने पूछा ,गुरुवर !इतनी कम सामग्री में इतने लोगों की तृप्ति का रहस्य क्या है ?संत ने कहा -"हे शिष्यों !धर्मात्मा वह है जो स्वयं की नहीं ,सबकी बात सोचता है | अपनी बचत सबके काम आये ,इस विचार से ही तुम्हारी पांच रोटी अक्षय अन्नपूर्णा बन गईं | जो जोड़ते हैं वे ही भूखे रहेंगें ,जिनने देना सीख लिया उनके लिये तृप्ति के साधन आप ही आ जुटते हैं | "

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