12 May 2013

FEELINGS

भाव -श्रद्धा ही उपासना को सार्थक बनाती है ,कर्मकांड के क्रियाकलाप नहीं | जिसने अपनी भावनाओं को बिखरने नहीं दिया और उनको उत्कृष्टता की दिशा में केन्द्रित कर दिया वही भक्त है ,उसी की भक्ति में शक्ति है |

           एक यहूदी अनपढ़ था और ग्रामीण भी | किसी ने उसे बता दिया कि जिस दिन प्रायश्चित पर्व हो ,उस दिन खूब अच्छा अच्छा खाना चाहिये और मिले तो शराब भी पीनी चाहिये | जब अगला प्रायश्चित पर्व आया तो एक दिन   पूर्व ही उसने खूब डटकर खाया ,शराब पी और नशे में धुत हो गया |
जब सुबह नींद टूटी तो उसने देखा कि उसका साथी तो प्रायश्चित पर्व की लगभग आधी प्रार्थना पूरी कर चुका है ,उसे तो एक भी मंत्र याद न था | उसे अपने आप पर भारी ग्लानि हुई |
सबको प्रार्थना करते देखकर वह वहीं बैठ गया और वर्णमाला के अक्षरों का ही पाठ करता हुआ भावना करने लगा -हे प्रभु !मुझे तो कोई मंत्र याद नहीं ,इन अक्षरों को जोड़कर तुम्ही मंत्र बना लेना | मैं तो तुम्हारा दास हूं ,पूजा के लिये नये भाव कहां से लाऊं ?जब तक दूसरे लोग प्रार्थना करते रहे ,वह ऐसे ही भगवान का ध्यान करता रहा | सायंकाल जब वे दोनों सामूहिक प्रार्थना में सम्मिलित हुए तो धर्मगुरु रबी ने उस ग्रामीण भक्त को अग्र -पंक्ति में रखा | यह देखकर उसके साथी ने आपति की -श्रीमानजी !इसे तो मंत्र भी अच्छी तरह याद नहीं | धर्मगुरु रबी ने कहा -"तो क्या हुआ ,इनके पास शब्द नहीं ,भाव तो हैं | भगवान तो भाव के भूखे हैं ,मंत्र तो हमारे तुम्हारे लिये हैं | "

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