7 March 2013

मन:स्थिति ही परिस्थितियों की जन्मदात्री है | मनुष्य जैसा सोचता है ,वैसा ही करता है और वैसा ही बन जाता है |
हमारे भले -बुरे कर्म ही संकट और सौभाग्य बनकर सामने आते हैं | इसलिए अपनी दीन -हीन ,दयनीय स्थिति के लिये किसी दूसरे को दोष देने से अच्छा है अपनी भावना मान्यता ,आकांक्षा ,विचारणा और गतिविधियों को परिष्कृत किया जाये | यदि मनुष्य अपने को सुधार ले तो अपना सुधरा प्रतिबिम्ब व्यक्तियों और परिस्थितियों में चमकता दिखायी पड़ने लगता है | 'यह संसार गुम्बद की तरह अपने ही उच्चारण को प्रतिध्वनित करता है | अपने जैसे लोगों का जमघट ही साथ में जुड़ जाता है |

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