' वे एक ऐसे तूफानी विद्दार्थी हैं जो विश्वविद्यालय नहीं गये, विश्वविद्यालय स्वयं ही उनके पास आया । '
ब्राजील के एक छोटे से गाँव का 12 वर्ष का बालक वन-विहार करते समय आपने पिता से कहता है---" मैं बड़ा होकर अपना सम्पूर्ण जीवन प्रकृति की गोद में , उसकी शोध में ही लगाऊंगा । "
पिता की आँखों में आँसू आ गये । अगस्तोरिशी उनके 11 वें पुत्र थे, वे उन्हें ज्यादा दिन स्कूल नहीं भेज सके । उन्होंने पुत्र को प्रेरित किया कि--- " संसार एक बहुत बड़ा विद्दालय है, जब तक भगवान की पाठशाला विद्दमान है, ज्ञान के लिए, बौद्धिक क्षमताओं के विकास के लिए किसी को भी भटकने और तरसने की आवश्यकता नहीं ।
किशोर बालक ने छोटी अवस्था से ही तीन डायरियाँ बनाई । तीनो डायरियाँ लेकर वह जंगल पहुँचता और अपना अभ्यास आरम्भ करता---- एक डायरी में वह वनस्पति विद्दा के अनुभव लिखता कि जंगल में कितने प्रकर के फूल व फल हैं, उनके परागकण से लेकर पल्लवित होने तक सारा ज्ञान अपनी डायरी में उतारते | 15 वर्ष की आयु में ही उनके पास सुविस्तृत ज्ञान था कि ब्राजील के 400 वर्ग मील लम्बे जंगल मे कहाँ कौन से वृक्ष पाये जाते हैं, उनकी विषय सूची में 90000 पौधे अपना नाम लिखा चुके थे , उन्होंने 19 पौधों की नई जातियाँ भी तैयार की ।
दूसरी डायरी में उन्होने 400 विभिन्न प्रकार के पक्षियों के बारे में जानकारी एकत्रित की, एक बार मादा पक्षी के रहन-सहन, गर्भावस्था आदि के अध्ययन के लिए घोंसले के पास 35 दिन तक बैठना पड़ा, एक जल पक्षी के आहार आदि की शोध के लिए तीन दिन तक पानी में डूबे रहना पड़ा ।
तीसरी डायरी में उन्होंने जीव-जंतुओं के बारे में शोध का काम किया । एक चींटी अपने कुनबे में कैसे पहुँचती है इसके लिए 30 घंटे तक चींटी की गतिविधियों का परीक्षण करते रहे ।
ब्राजील विश्वविद्यालय ने उन्हें प्राणी-विशेषज्ञ की उपाधि दी और उच्च वेतन पर आमंत्रित किया किन्तु उन्होंने इनकार कर दिया, रियो के म्यूजियम में भी उन्हें आमंत्रित किया गया किन्तु वे नहीं गये तब विश्वविद्यालय और म्यूजियम दोनों ने ही उन्हें सब तरह की सुविधाएँ जहां वे चाहते थे दीं, इस प्रकार उन्होंने अपना स्वतंत्र चिड़ियाघर और प्राकृतिक विश्वविद्यालय बनाकर जीवन के अंतिम क्षणों तक शोध कार्य जारी रखा । ब्राजील सरकार ने उन्हें बहुत बड़ा इनाम दिया । सांता टेरेसा में बना गवर्नमेंट बायोलाजिकल फील्ड स्टेशन आज भी इस गौरव गाथा का प्रसार कर रहा है और प्रतिवर्ष पचास हजार से अधिक पर्यटकों को बुलाकर उनकी ज्ञान-साधना और तप की प्रेरणा प्रदान करता है ।
ब्राजील के एक छोटे से गाँव का 12 वर्ष का बालक वन-विहार करते समय आपने पिता से कहता है---" मैं बड़ा होकर अपना सम्पूर्ण जीवन प्रकृति की गोद में , उसकी शोध में ही लगाऊंगा । "
पिता की आँखों में आँसू आ गये । अगस्तोरिशी उनके 11 वें पुत्र थे, वे उन्हें ज्यादा दिन स्कूल नहीं भेज सके । उन्होंने पुत्र को प्रेरित किया कि--- " संसार एक बहुत बड़ा विद्दालय है, जब तक भगवान की पाठशाला विद्दमान है, ज्ञान के लिए, बौद्धिक क्षमताओं के विकास के लिए किसी को भी भटकने और तरसने की आवश्यकता नहीं ।
किशोर बालक ने छोटी अवस्था से ही तीन डायरियाँ बनाई । तीनो डायरियाँ लेकर वह जंगल पहुँचता और अपना अभ्यास आरम्भ करता---- एक डायरी में वह वनस्पति विद्दा के अनुभव लिखता कि जंगल में कितने प्रकर के फूल व फल हैं, उनके परागकण से लेकर पल्लवित होने तक सारा ज्ञान अपनी डायरी में उतारते | 15 वर्ष की आयु में ही उनके पास सुविस्तृत ज्ञान था कि ब्राजील के 400 वर्ग मील लम्बे जंगल मे कहाँ कौन से वृक्ष पाये जाते हैं, उनकी विषय सूची में 90000 पौधे अपना नाम लिखा चुके थे , उन्होंने 19 पौधों की नई जातियाँ भी तैयार की ।
दूसरी डायरी में उन्होने 400 विभिन्न प्रकार के पक्षियों के बारे में जानकारी एकत्रित की, एक बार मादा पक्षी के रहन-सहन, गर्भावस्था आदि के अध्ययन के लिए घोंसले के पास 35 दिन तक बैठना पड़ा, एक जल पक्षी के आहार आदि की शोध के लिए तीन दिन तक पानी में डूबे रहना पड़ा ।
तीसरी डायरी में उन्होंने जीव-जंतुओं के बारे में शोध का काम किया । एक चींटी अपने कुनबे में कैसे पहुँचती है इसके लिए 30 घंटे तक चींटी की गतिविधियों का परीक्षण करते रहे ।
ब्राजील विश्वविद्यालय ने उन्हें प्राणी-विशेषज्ञ की उपाधि दी और उच्च वेतन पर आमंत्रित किया किन्तु उन्होंने इनकार कर दिया, रियो के म्यूजियम में भी उन्हें आमंत्रित किया गया किन्तु वे नहीं गये तब विश्वविद्यालय और म्यूजियम दोनों ने ही उन्हें सब तरह की सुविधाएँ जहां वे चाहते थे दीं, इस प्रकार उन्होंने अपना स्वतंत्र चिड़ियाघर और प्राकृतिक विश्वविद्यालय बनाकर जीवन के अंतिम क्षणों तक शोध कार्य जारी रखा । ब्राजील सरकार ने उन्हें बहुत बड़ा इनाम दिया । सांता टेरेसा में बना गवर्नमेंट बायोलाजिकल फील्ड स्टेशन आज भी इस गौरव गाथा का प्रसार कर रहा है और प्रतिवर्ष पचास हजार से अधिक पर्यटकों को बुलाकर उनकी ज्ञान-साधना और तप की प्रेरणा प्रदान करता है ।
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