8 June 2018

WISDOM ----- तृष्णा का अंत नहीं होता

 '  दिवस - रात्रि , शाम - सुबह ,  शिशिर - वसंत   जीवन  में  कितनी  बार  आये  और  गए  l  काल  ने  आयु  को  भी  समाप्त  कर  दिया  किन्तु  तृष्णा  समाप्त  न  हुई  l "
  घटना  उन  दिनों  की  है  जब  आचार्य  शंकर    ऋषि  व्यास  के  सूत्रों   की  चर्चा  हेतु  काशी  के  पास  एक  गाँव  में  शिव  मंदिर  में  ठहरे  हुए  थे  l  एक  शिष्य  ने  आकर   सूचना    दी  कि  एक   वृद्ध  सज्जन  आपसे  मिलना  चाहते  हैं   l  आचार्य  ने  कहा --- " उन्हें  आदर पूर्वक  ले  आओ  l  "   शिष्य  उन्हें  लेकर  आचार्य  के  समीप  उपस्थित  हुए  l  आचार्य  ने  देखा ,  वे  अति वृद्ध  थे ,  झुकी  हुई  कमर , दन्त विहीन  मुख ,  कमजोर  शरीर  और  वे  हाथ  में  एक  पुस्तक  पकड़े  हुए  थे  l 
वृद्ध  ने  आचार्य  से  कहा --- " आचार्य  ! यह  व्याकरण  की  पुस्तक  है  l  आप परम  विद्वान्  हैं  l  मुझे  व्याकरण  का  ज्ञान  दें  l "   इस  पर  आचार्य  ने  उनसे  कहा --- "  इस  आयु  में  आपके  सीखने  की  इच्छा  प्रशंसनीय  है   l  यदि  आप  केवल  व्याकरण  सीखना  चाहते  हैं    तो  इस  पुस्तक  को   अवश्य  पढ़ें , परन्तु   ज्ञान  का  यथार्थ  चितशुद्धि  में  है  l "
 वृद्ध  अपनी  ही  धुन  में  था , बोला --- "  मैं  व्याकरण  सीखूंगा , फिर  शास्त्रों  का  अध्ययन  करूँगा  l  शास्त्रों  को  समझकर  मैं   पंडित , फिर  महापंडित  बनूँगा  l  तब  मुझे   विद्वानों  से  शास्त्रार्थ  करने  का  मौका  मिलेगा  l  शास्त्रार्थ  में  विजयी  होने  पर   जन - जन  में  मेरा  सम्मान  होगा  l  लोग  मुझे  शास्त्रार्थ  महारथी , तर्क शिरोमणि , महामहोपाध्याय  कहेंगे   l  ऐसी  स्थिति  में  मुझे  ज्ञानी वृद्ध  कहा  और  समझा  जायेगा l "
         इस  क्षीणकाय,  कांपते  हुए  वृद्ध  की  मनोदशा  पर  आचार्य  को  करुणा  हो  आई ,  वे  इस  वृद्ध  को  जीवन  की  सही  राह  दिखाना  चाहते  थे  l  उन्होंने  कहा ---- " इतनी  आयु  होने  पर   इतनी  आशाएं  !  इतनी  अधिक  महत्वाकांक्षाएं ,  कैसी  है  ये  तृष्णा  ?  अरे  !  ज्ञान  शब्दों  में  नहीं ,  ज्ञान  आकांक्षाओं  और  अहंकार  के  पोषण  में  नहीं  ,  बल्कि  इनके  विनाश  में  है   l  "  उन्होंने  ईश्वर  से  प्रार्थना  की  -- हे  प्रभु  !  इस  प्राणी  का  उद्धार  कर  l   फिर  वे  उससे  कहने  लगे  --- "  काल  ने  तुम्हारी  आयु  को  समाप्त  कर  दिया ,  किन्तु  तुम्हारी  तृष्णा  समाप्त  नहीं  हुई  l  अरे ! मूढ़ !  मरण  समीप   आने  पर   यह  व्याकरण  काम  नहीं  आएगा  ,  अब  तुम  गोविन्द  का  भजन  करो ,  भक्ति  करो  l "
   आचार्य  शंकर  के   मुख  से  भक्ति   की  महिमा  सुन  के  उस  वृद्ध  को  चेत  हुआ    l   शिष्यों  ने  भी  भक्ति  की  महिमा  को  जाना  l 

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