8 July 2018

WISDOM ---- जो महाभारत में है , वही इस धरती पर है , ईश्वर सद्बुद्धि दें हम सद्गुणों को अपनाएं

  '  यह  मनुष्य  की  कमजोरी  है  कि   वह  महाकाव्यों  से ,  इतिहास  से   अच्छी  बातें --- स्वाभिमान ,  वीरता ,  सम्मान ,  साहस ,   उदारता ,  सेवा - संवेदना  जैसे  सद्गुणों  को  नहीं  सीखता ,  अपने  जीवन  में  नहीं   अपनाता   लेकिन  दुर्गुणों  को  बहुत  जल्दी  अपनाता  है   जैसे   रावण  और  दुर्योधन  का  अहंकार ,   दुर्योधन  द्वारा  सारे  जीवन  किये  जाने  वाले  षड्यंत्र  ,  दुशासन  द्वारा  चीर- हरण  ,  ईर्ष्या - द्वेष ,  अपने  ही  भाइयों  का  राज्य  हड़प   लेना  ,  भगवान  श्रीकृष्ण  को  ही  अपमानित  करना   l  ये  सब  अवगुण  आज  समाज  में  बड़े  पैमाने  पर  मिल  जायेंगे   l ----
    महाभारत   का   प्रसंग  है ----- अर्जुन  ने  जब   खांडव  वन  को  जलाया  ,  तब  अश्वसेन  नामक  सर्प   की  माता   बेटे  को  निगलकर  आकाश  में   उड़  गई  ,  अर्जुन  ने  उसका  मस्तक  बाणों    काट  डाला  l  सर्पिणी  तो  मर  गई  लेकिन  अश्वसेन  बचकर  भाग  गया  l    उसी  वैर  का  बदला  लेने  वह  कुरुक्षेत्र   की    रणभूमि  में   आया   l  उसने  कर्ण   से  कहा  ---- "  मैं    विश्रुत  भुजंगों    स्वामी  हूँ  l  जन्म   से  ही   पार्थ    शत्रु   हूँ   l  तेरा  हित  चाहता  हूँ   l  बस  एक  बार  अपने  धनुष  पर   मुझे   चढ़ाकर  मेरे  महाशत्रु   तक   मुझे  पहुंचा  दे   l  तू  मुझे  सहारा  दे   l  मैं   तेरे    शत्रु   को    मारूंगा   l "
  कर्ण  हँसे  और  बोले  --- "  जय  का  समस्त  साधन  नर  की  बाँहों  में  रहता  है  ,  उस  पर  भी   मैं  तेरे  साथ  मिलकर  ---- सांप  के  साथ  मिलकर  मनुज  के  साथ  युद्ध करूँ  ,  निष्ठा  के  विरुद्ध  आचरण  करूँ   !  मैं  मानवता  को  क्या  मुंह  दिखाऊंगा   ? " 
 इसी  प्रसंग  पर  रामधारी सिंह  ' दिनकर '  ने  अपने  प्रसिद्ध  काव्य  ' रश्मिरथी ' में  लिखा  है  ----- 
" रे  अश्वसेन   तेरे  अनेक  वंशज  हैं  ,  छिपे  नरों  में  भी ,   सीमित  वन  में  ही  नहीं  ,  बहुत बसते   पुर - ग्राम - घरों  में  भी   l " 
  सच  ही  है   ,  आज  सर्प  रूप  में   कितने  अश्वसेन   मनुष्यों  के    बीच  बैठे  हैं  ---- राष्ट्रविरोधी  गतिविधियों  में  लीन  !  महाभारत  की  ही  पुनरावृति   है   l  

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