एक सूफी कथा है ---- एक फकीर ने अपने शिष्य को कुछ धन देते हुए कहा --- " इसे किसी दरिद्र व्यक्ति को दान में दे देना l " गुरु ने गरीब न कहकर दरिद्र कहा l
गुरु के सत्संग में शिष्य समझ चुका था कि गरीबी परिस्थितियों वश होती है लेकिन दरिद्रता मन: स्थिति है l अत: उसने किसी दरिद्र व्यक्ति की तलाश करनी शुरू कर दी l
अपनी इस तलाश में वह एक राजमहल के पास जाकर रुक गया l वहां कुछ लोग चर्चा कर रहे थे कि राजा ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रजा पर कितने कर लगाएं हैं , कितने लोगों को लूटा है l इन बातों को सुनकर उसे लगा कि उसकी तलाश पूरी हुई l दूसरे दिन उसने राजा के दरबार में उपस्थित होकर राजा को अपने सारे रूपये सौंप दिए l एक फकीर के द्वारा इस तरह अचानक रूपये दिए जाने से वह राजा हैरान हुआ l इस पर उस शिष्य ने अपने गुरु की बात कह सुनाई और कहा ---- " राजन ! इच्छाएं हों तो दरिद्रता व दुःख बने ही रहेंगे l इसलिए जो इन इच्छाओं के सच को जान लेता है , वह दुःख से नहीं , अपनी चाहतों से मुक्ति खोजता है l "
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है -----' जिसकी इच्छाएं जितनी अधिक हैं , उसे उतना ही दरिद्र होना पड़ेगा , उसे उतना ही याचना और दासता के चक्रव्यूह में फँसना पड़ेगा l '
गुरु के सत्संग में शिष्य समझ चुका था कि गरीबी परिस्थितियों वश होती है लेकिन दरिद्रता मन: स्थिति है l अत: उसने किसी दरिद्र व्यक्ति की तलाश करनी शुरू कर दी l
अपनी इस तलाश में वह एक राजमहल के पास जाकर रुक गया l वहां कुछ लोग चर्चा कर रहे थे कि राजा ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रजा पर कितने कर लगाएं हैं , कितने लोगों को लूटा है l इन बातों को सुनकर उसे लगा कि उसकी तलाश पूरी हुई l दूसरे दिन उसने राजा के दरबार में उपस्थित होकर राजा को अपने सारे रूपये सौंप दिए l एक फकीर के द्वारा इस तरह अचानक रूपये दिए जाने से वह राजा हैरान हुआ l इस पर उस शिष्य ने अपने गुरु की बात कह सुनाई और कहा ---- " राजन ! इच्छाएं हों तो दरिद्रता व दुःख बने ही रहेंगे l इसलिए जो इन इच्छाओं के सच को जान लेता है , वह दुःख से नहीं , अपनी चाहतों से मुक्ति खोजता है l "
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है -----' जिसकी इच्छाएं जितनी अधिक हैं , उसे उतना ही दरिद्र होना पड़ेगा , उसे उतना ही याचना और दासता के चक्रव्यूह में फँसना पड़ेगा l '
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