1 May 2020

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- '  धन  का  संचय  तो  कितनी  ही  बड़ी  मात्रा  में   बिना  उचित - अनुचित  का  विचार  किए  हुए  किया  जा  सकता  है  ,  पर  उसके  उपयोग  के  लिए  एक  सीमा  निर्धारित  है  l   कोई  अमीर  भी    एक  मन  भोजन  नहीं  कर  सकता  ,  सौ   फुट  लम्बे  पलंग  पर  सोने   और  उतना  ही  बड़ा  बिस्तर  बिछाते   किन्ही  धनिकों  को  भी  नहीं  देखा  जा  सकता   l   अधिक  उपार्जन  और  अधिक  संग्रह   मन  बहलाने  भर  का  है   l  अंतत:  वह  इसी  धरती  पर  पड़ा  रह  जाता  है   l   जिस  पर  वह  अनादि  काल  से  पड़ा  हुआ  है   और  अनंत  काल  तक  पड़ा  रहेगा   l  सम्पदा  का  इस  हाथ  से  उस  हाथ  हस्तांतरण   तो  हो  सकता  है  ,  पर  इससे  शरीर  निर्वाह  में   काम  आने  वाले   साधनों  को  छोड़कर   शेष  को  इसी  दुनिया  की   सुरक्षित  पूंजी  के  रूप  में  जहाँ  का  तहाँ   छोड़ना  पड़ता  है   l  यह  तथ्य  सामान्य  समय  में  समझ  में  नहीं  आता  l   बादशाह  सिकन्दर   ने   मरते  समय   अपने  दोनों  हाथ  ताबूत  से  बाहर   निकाल  दिए  थे  कि  अपार  धन  सम्पदा   का  स्वामी  होते  हुए  भी   बिना  एक  पाई  साथ  लिए   खाली  हाथ  चला  गया   l
 आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- जीवन  सम्पदा  महत्वपूर्ण  कार्यों  के  लिए  धरोहर   के  रूप  में  मिली  है  l  उसे  उन्ही  प्रयोजनों  में  खर्च  किया  जाना  चाहिए  , जिसके  निमित  ईश्वर  ने   सौंपा  है  l   यदि  अत्यधिक  धन - संपदा   है   तो  उसका  उपयोग  परमार्थ  प्रयोजन  में ,   पिछड़े  को  बढ़ाने  और  गिरे  हुओं  को   उठाने  में   करना  चाहिए  l   तभी  उस  धन  की  सार्थकता  है  l    दुरूपयोग  की  नीति   अपनाने  पर  तो  अमृत  भी  विष  बन  जाता  है   l 

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