12 January 2023

WISDOM -----

  1.  एक  भक्त  भगवान  की  प्रतिमा  के  आगे  बैठा  कुछ  याचना  करता  था  l  याचना  करते -करते  बहुत  समय  बीत  गया  , पर  उसकी  कामना  पूर्ण  नहीं  हुई  l  किसी  अविश्वासी  ने  हँसते  हुए  भक्त  से  कहा  --- " भला  कहीं  पत्थरों  की  मूर्तियाँ  भी   किसी  को  कुछ  दिया  करती  हैं  ? "  भक्त  ने  कहा  --- " सो  तो  ठीक  है  , पर  मैंने  सोचा  - मनोरथ  के  पूर्ण  न  होने  पर   जो  निराशा  होती  है  ,  उससे  चित्त  खिन्न  न  हो  ,  उसके  लिए  इस  प्रकार  का  अभ्यास  किया  जाए   तो  हानि  ही  क्या  है  ? "

2 . पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- ' भक्ति  का  अर्थ  है  --- भावनाओं  की  पराकाष्ठा   और  परमात्मा  एवं  उसके  असंख्य  रूपों  के  प्रति  प्रेम  l  यदि  पीड़ित  को  देख   अंतर  में  करुणा  जाग  उठे ,  भूखे  को  देख  अपना  भोजन  उसे  देने  की   चाह   मन  में  आए   और  भूले -बिसरों  को  देख  उन्हें  सन्मार्ग  पर  ले  चलने  की  इच्छा  हो  ,  तो  ऐसे  ह्रदय  में  भक्ति  का  संगीत  बजते  देर  नहीं  लगती  l  सच्चे  भक्त  की  पहचान   भगवान  के  चित्र  के  आगे  ढोल -मँजीरा  बजाने  से  नहीं  , बल्कि  गए -गुजरों  और  दीन -दुखियों  को  उसी  परमसत्ता  का  अंश  मानकर  ,  उनकी  सेवा  करने  से  होती  है  l "  

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