12 August 2023

WISDOM ----

   सच्चा  अध्यात्मवादी   कौन  ? ---  एक  व्यक्ति  बहुत  गरीब  था  l  उसने  कड़ी  मेहनत  और  पुरुषार्थ  के  बल  पर   धीरे -धीरे  काफी  संपत्ति  अर्जित  कर  ली   और  अपने  गाँव  का  सबसे  अमीर  व्यक्ति  बन  गया   लेकिन  उसे  अपनी  अमीरी  का  बिलकुल  भी  घमंड  नहीं  था  l  उसका  पुत्र  जब  बड़ा  हो  गया  तो  उसने   अपने  घर  की  सारी  जिम्मेदारी  उसे  सौंप  दी  और  स्वयं  अपने  घर  से   कुछ  दूर  जंगल  में  कुटिया  बनाकर  रहने  लगा  , वहीँ  ध्यान  व  भजन  करता  और   जब -तब  घर  जाकर  अपने  पुत्र  का  मार्गदर्शन  भी  करता  l  एक  दिन  देवर्षि  नारद  उस  जंगल  से    गुजरे  l  उस  व्यक्ति  को  वहां  देख  रुक  गए  l  उस  व्यक्ति  ने  नारद जी  को  अपने  परिवार  और  धन -वैभव  के  साथ  अपनी  आध्यात्मिक  रूचि   और  तपस्या   के  बारे  में  विस्तार  से  बताया  l  नारद जी  ने  उसकी  परीक्षा  लेने  की  सोची  , कुछ  दिन  बाद  वह  पुन:  जंगल  में  आए  तो  देखा  वह   व्यक्ति  ध्यान  कर  रहा  है  l  कुछ  देर  बाद  जब  वह  ध्यान  से  बाहर  आया   तो  नारदजी  ने  उससे  कहा  -- आपके  मकान  में  भयंकर  आग  लग  गई  है  , कुछ  ही  क्षणों  में  आपका  धन -वैभव  जल  कर  राख  हो  जायेगा  l  यह  सुनकर  वह  व्यक्ति  जरा  भी  परेशान  नहीं  हुआ   और  बोला  --- 'वह  धन -वैभव  प्रभु  का  दिया  हुआ  है  , जैसी  प्रभु  की  इच्छा  l  वैसे  भी  घर  में  बहुत  लोग  हैं  जो  विपत्ति  का  सामना  कर  सकते  हैं  l '  नारदजी  प्रसन्न  होकर  चले  गए  l  कुछ  दिनों  बाद  वे  पुन:  उस  व्यक्ति  को  देखने  आए  , तो  देखा  कुटिया  खाली  है , वह  व्यक्ति  वहां  नहीं  है  l  नारदजी  को  उस  व्यक्ति  पर  शक  हुआ  और  वे  उसे  खोजते  हुए  उसके  गाँव  पहुंचे   तो  देखा  , उन  दिनों  उस  क्षेत्र  में  भयंकर  अकाल  पड़ा  था   और  वह  व्यक्ति  अपनी  तपस्या , ध्यान  छोड़कर  लोगों  को   अपने  हाथ  से  राशन -पानी , धन , भोजन  सामग्री  बांटने  में  लगा  है  l  कोई  भी  खाली  हाथ  नहीं  जा  रहा , सब  प्रसन्न  होकर  जा  रहे  हैं  l  नारद जी  उसके  सेवा भाव  से  बहुत  प्रसन्न  हुए  और  बोले  --- " तुम्हारी  तपस्या  हर  द्रष्टि  से  उत्तम  है , तुमने  अध्यात्म  को  सही  अर्थों  में  अपनाया  है  l  तुम्हारे  भीतर  मानव कल्याण  की  भावना  है  l  तुम में  न  तो  धन -वैभव  का  अभिमान  है  और  न  ही  अपनी  तपस्या  का  अभिमान  है  l  तुम्हारे  लिए  वन  और  राजमहल  दोनों  एक  समान  हैं  , तुम  सच्चे  अध्यात्मवादी  हो  l "  नारदजी  ने  उसे  आशीर्वाद  दिया   और  उससे  विदा  ली  l 

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