11 March 2013

LAW OF NATURE

'सुख और दुःख चक्र की तरह घूमते रहते हैं | आ पड़ने वाले सुख और दुःख का एक सा सेवन करना चाहिये | 'एक अंधियारी रात में कोई प्रौढ़ व्यक्ति नदी के तट से कूदकर आत्म हत्या करने पर विचार कर रहा था | मूसलाधार वर्षा थी ,नदी पूरी बाढ़ पर थी | वह नदी में कूदने के लिये जैसे ही चट्टान के किनारे पहुंचा कि दो वृद्ध किंतु मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया | तभी बिजली चमकी और उसने देखा कि आचार्य रामानुज उसे पकड़े हुए हैं | वह उस क्षेत्र का सबसे धनी व्यक्ति था | आचार्य ने उससे इस अवसाद का कारण पूछा | सारी कथा सुनकर वे हँसने लगे और बोले -"तो तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे ?"वह बोला -"हाँ ,तब मेरे सौभाग्य का सूर्य चमक रहा था और अब सिवाय अंधियारे के मेरे जीवन में और कुछ भी बाकी नहीं है | "यह सुनकर आचार्य रामानुज ने कहा -"दिन के बाद रात्रि और रात्रि के बाद दिन | जब दिन नहीं टिका तो रात्रि कैसे टिकेगी !परिवर्तन प्रकृती का शाश्वत नियम है जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे | जो इस शाश्वत नियम को जान लेता है ,उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है ,जो वर्षा और धूप में समान ही बनी रहती है | "सुख और दुःख का आना जाना ठीक वसंत व पतझड़ के आने व जाने की तरह है | यही इस जगत का शाश्वत नियम है |

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