30 March 2013

KNOWLEDGE /SYMPATHY

समर्थ रामदास ने अपने शिष्य कल्याण को महाराष्ट्र के छोटे से गांव में धर्म प्रचार व जन जाग्रति के लिये भेजा | गांव पहुंच कर कल्याण ने देखा कि इस गांव के लोग बीमार ,गरीब ,अशिक्षित हैं ,उन्हें भरपेट भोजन तक नहीं मिलता | कल्याण ने वहां घोषणा की -समर्थ रामदास के शिष्य तुम लोगों के दुःख दूर करने आये हैं ,यह सुनकर पूरा गांव मैदान में एकत्रित हो गया | सबको सामने बैठाकर कल्याण ने उन्हें प्रवचन देना ,ब्रह्म सूत्र और गीता के श्लोक की व्याख्या सुनाना प्रारम्भ किया | आश्चर्य !भीड़ के चेहरे पर दुःख ,उदासी ,वेदना और तीव्र हो गई | एक -एक करके वे उठ गये और मैदान खाली हो गया | हताश होकर कल्याण गुरु समर्थ के पास लौट आये और बोले -"हमारा उपदेश कुछ काम नहीं आया ,उन अनपढ़ मूर्खों ने हमारी कुछ भी नहीं सुनी "| समर्थ बोले -"वे अनपढ़ हैं और तुम कुपढ़ हो कल्याण | तुम उनकी विवशता ,उनकी भावना को नहीं पढ़ सके | करुणा और संवेदना के बिना ,समाज के ह्रदय को स्पर्श किये बगैर ,उनकी प्राथमिक जरूरतों को पूरा किये बिना तत्वज्ञान की चर्चा संभव नहीं | आज की आवश्यकता -मुरझाए जीवन को संवेदना से सींचना है ,जीवन के प्रति आशा जगानी है | "फिर उन्होंने दो अन्य शिष्यों को उस गांव में औषधि ,शिक्षा ,भोजन आदि के प्रबंध के लिये भेजा | 

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