30 March 2013

SYMPATHY

संवेदना होश का ,बोध का दूसरा नाम है ,जिसके दिलों की धडकनों में संवेदना के स्वर गूंजते हैं ,वह आलसी ,विलासी ,निष्ठुर ,निष्करुण नहीं हो सकता | आस -पास का दुःख उसे बैचैन करता रहेगा | जब तक वह इन पीड़ितों के लिये कुछ अच्छा नहीं करेगा ,उसे राहत नहीं मिलेगी | संवेदना से ही स्वार्थ और अहंता की जकड़न ढीली पड़ती हैं | संवेदना से प्रेरित होकर दूसरों के लिये किया गया तनिक सा कार्य भी आत्म शक्ति को जाग्रत कर देता है ,दूसरों के प्रति थोड़ी सी भलाई का विचार भी ह्रदय में सिंह का बल संचारित कर देता है | विकास की अंतिम सीढ़ी भाव -संवेदना को मर्माहत कर देने वाली करुणा के विस्तार में है | |
आत्म निर्माण का उद्देश्य यह है कि मनुष्य की इच्छाएं और मनोवृति उनके निजी सुख और उपभोग तक ही सीमित न रहें वरन उनका विस्तार हो | लेने -लेने में ही सब आनंद नहीं है ,जब तक केवल पाने की अभिलाषा रहती है तब तक मनुष्य छोटा ,दीन ,असहाय अकामऔर बेकार सा लगता है किंतु जैसे ही उसके शरीर ,मन ,बुद्धि और सम्पूर्ण साधनों की दिशा चतुर्मुखी होने लगती है ,चारों ओर फैलने लगती है वैसे ही उसकी महानता की  सुगंध भी फैलने लगती है और वह अपने जीवन लक्ष्य की ओर अग्रसर होने लगता है |
इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध नगर में जन्मे बूथ ने शिक्षा प्राप्त करने के बाद पादरी बनने का निश्चय किया | वे पादरी बन गये तब एक दिन उनने छोटे लड़के को सड़क पर गिरते और पीछा करने वालों द्वारा पीटते देखा | उन्हें ज्ञात हुआ कि लड़का हलवाई की दुकान से रोटी चुराकर भागा है | पादरी ने पूछा तो लड़के ने कहा -"पिटाई सहन कर ली गई ,पर भूख सहन न हो सकी | "छोटा बालक अनाथ था कुछ कमाने लायक उसकी उम्र भी नहीं थी | पादरी रात भर सो न सके ,उनके मस्तिष्क में वे शब्द गूंजते रहे जोंबच्चे  ने कहे थे दूसरे दिन उन्होंने पादरी पद से इस्तीफा देदिया और अनाथों ,पथभ्रष्टों को प्यार से रास्ते पर लाने और शिक्षा व उद्द्योग सिखाने का काम हाथ में लिया ,इस संगठन का नाम रखा 'मुक्ति सेना '| पादरी को जनरल कहा जाने लगा | उनने ऐसे हजारों लोगों को तलाश कर सुधारा तथा व्यवसायी बनाया | उनकी लगन से 60 देशों में इस संस्था की शाखा बनाई गईं और पतितों को ऊँचा उठाने के कार्य में बहुत सफलता पाई |  

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