3 March 2013

चिंतन और चरित्र यदि निम्न स्तर का है तो उसका प्रतिफल भी दुखद ,संकटग्रस्त एवं विनाशकारी होगा | उसके दुष्परिणाम को कर्ता स्वयं तो भोगता ही है ,साथ ही अपने संबद्ध परिकर को भी दलदल में घसीट ले जाता है | नाव की तली में छेद हो जाने पर उसमे बैठे सभी यात्री मझधार में डूबते हैं | स्वार्थी ,विलासी और कुकर्मी स्वयं तो आत्म -प्रताड़ना ,लोक भर्त्सना और दैवी दंड विधान की आग में जलता ही है ,साथ ही अपने परिवार ,संबंधी ,मित्रों ,स्वजनों को भी अपने जाल -जंजाल में फंसाकर अपनी ही तरह दुर्गति भुगतने के लिये बाधित करता है | इससे समूचा वातावरण विकृत ,दुर्गन्धित होता है | सुगंध की अपेक्षा दुर्गन्ध का विस्तार अधिक होता है | एक नशेड़ी ,जुआरी ,दुर्व्यसनी ,कुकर्मी अनेकों संगी साथी बना सकने में सहज सफल हो जाता है लेकिन आदर्शों का ,श्रेष्ठता का अनुकरण करने की क्षमता कम होती है | पानी नीचे की ओर तेजी से बहता है लेकिन ऊपर चढ़ाने के लिये प्रयास करना पड़ता है | गीता पढ़कर इतने आत्म ज्ञानी नहीं बने जितने कि दूषित साहित्य ,अश्लील द्रश्य अभिनय से प्रभावित होकर कामुक अनाचार अपनाने में प्रवृत हुए | कुकुरमुतों की फसल और मक्खी मच्छरों का परिकर भी तेजी से बढ़ता है पर हाथी की वंश वृद्धी अत्यंत धीमी गति से होती है | समाज में छाये हुए अनाचार ,दुष्प्रवृतियों का मात्र एक ही कारण है कि जन साधारण की आत्म चेतना मूर्छित हो गई है | चिन्तन में आदर्शों का समावेश ,द्रष्टिकोण में उत्कृष्टता और व्यवहार में सज्जनता तथा स्वार्थ के स्थान पर पुण्य परमार्थ की प्रवृति को जगाकर ही आत्मिक विकास संभव है | यही सच्ची प्रगतिशीलता है 

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