1 April 2020

WISDOM -----

 ' बुरा  जो  देखन  मैं  चला , बुरा  न  मिलिया  कोय  l  जो  दिल  खोजा   आपना , मुझसे  बुरा  न  कोय  l
  आचार्य श्री  ने  लिखा  है ---- 'विवेकहीन  मनुष्य  अपने  शत्रुओं  की  खोज  में   अपने  समय  को  गंवाते  रहते  हैं  l   इन्हे  खोजने  व  इनसे  निपटने  के  लिए  वे  भारी - भरकम  व्यवस्था  करते  हैं  l  अनेकों  से  इसके  लिए  सहायता  की  याचना    व  प्रार्थना  करते  हैं  ,  ताकि  वे  अपने  शत्रुओं  को  पहचान  सकें  ,  उन्हें  परास्त  कर  सकें    लेकिन  ये  सारे  प्रयास ,  इस  काम  में  नियोजित  सभी  पुरुषार्थ  हमेशा  निष्फल  ही  साबित  होते   रहते  हैं    क्योंकि  व्यक्ति  के  यथार्थ  शत्रु   तो  स्वयं  के  अस्तित्व  में  छुपे  रहते  हैं  l   इन्हे  कहीं  बाहर  ढूंढने  - तलाशने  की  कोशिश  ही  बेकार  है  l   इन्हे  तलाशने  के  लिए  जरुरत  है  स्वयं  के  विवेक  की  l   इनकी  सही  पहचान  के  लिए  आत्मसमीक्षा  की  आवश्यकता  है  l
आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- सद्गुणों  की  सम्पति  मनुष्य  को  समर्थ  बनाती   है   और  दुर्गुण  ही  उसे  दुर्बल  बनाते  हैं  l   जो  वासनाओं  के  अँधेरे  से  घिरे  हैं  ,  उनसे  बड़ा  असहाय  इस  जगत  में  अन्य  कोई  भी  नहीं  है  l 

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