6 March 2021

WISDOM ------

    विज्ञान   कितना  भी  आगे  बढ़  जाये  ,  वह  अध्यात्म   की  बराबरी  नहीं  कर  सकता   क्योंकि  अध्यात्म  का   संबंध   चेतना  के  परिष्कार  से  है  l   गलत  हाथों  में  पहुंचकर  विज्ञान ,      संसार  का  बहुत  अहित  करता   है  लेकिन  अध्यात्म  की  राह  मानसिक  शांति  प्रदान  करती  है  l   विज्ञान    के  एक  से  बढ़कर  एक  अविष्कार  हुए   लेकिन  मृत्यु  से  कोई  नहीं  बच  सकता   और  विज्ञान   के  पास  तृतीय  नेत्र  जैसी  भी  कोई  शक्ति  नहीं  है   लेकिन  हमारे  देश  में  जो  अध्यात्म  में,    ईश्वर - प्रेम  में  चरम  शिखर  पर  पहुंचे  उनके  पास  यह  शक्ति  थी    स्वामी  विवेकानंद  ने  अपने  इसी   दिव्य नेत्र  का  प्रयोग   करते  हुए   जमशेद जी  टाटा  को   बिहार  के  उक्त  स्थान  में  कोयले  का  पता  बताया  था  l      सूरदास जी   नेत्रहीन  थे  l   वे  अपने  स्थान   गोवर्धन  से     गोकुल  नवनीतप्रिया   के  दर्शन  के  लिए  जाते  थे  l   वे  गोवर्धन  के   श्रीनाथ  जी  की  प्रतिमा  के  दर्शन  करते   और  हर  रोज   उनकी  अद्भुत  साज - सज्जा  का  वर्णन   पद  रचना  द्वारा   औरों  को  भी  सुनाया  करते  थे   l   एक  दिन  वहां  के  पुजारी  के  पुत्र  गिरधर  ने  किसी  के  बहकावे  में  आकर   उनकी  परीक्षा  लेनी  चाही   l   उस  दिन  उसने   मूर्ति  को   निर्वसन  कर  मात्र  मोतियों  की  मालाओं  से  श्रंगार   किया   और  सूरदास  से  उसका  वर्णन  करने  को  कहा  l   सूरदास जी  ने  एक   पद   रचकर    उसका  यों   उल्लेख  किया   ---- "  देखे  री   हरि   नंगम   नंगा   l      जलसुत   भूषण  अंग  बिराजत   ,      बसनहीन   छवि   उठत  तरंगा   l   वर्णन  बिलकुल  सही  पाकर   पुजारी   का पुत्र  बड़ा  लज्जित  हुआ    और  उसने  क्षमा- याचना  की   l 

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