पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " संसार में अनीति इसलिए नहीं बढ़ी कि दुरात्माओं की ताकत अधिक थी l बल्कि उसका विस्तार इसलिए अधिक हुआ क्योंकि उत्पीड़िकों में विरोध - प्रतिरोध का साहस नहीं रहा l अन्याय इसलिए बढ़ता है क्योंकि उसके विरोध में सिर उठाने वाला साहस मूक , बघिर , पंगु बना पड़ा है l सहन करने में तो अत्याचारी का साहस बढ़ता है l बकरियाँ पालतू बन गईं पर हिरणों पर यह प्रयोग सफल नहीं हुआ l दोनों की जाति और स्थिति में थोड़ा सा ही अंतर है l कुत्ते और सियार एक ही जाति के हैं l बिल्ली और बन - बिलाव में नाम मात्र का अंतर है l एक ने मनुष्य की दासता स्वीकार कर ली l दूसरे ने नहीं की l समर्थ होने के कारण प्राण तो लिए जा सकते हैं पर वशवर्ती नहीं बनाया जा सकता l अत: दुष्टों की तरह दुर्बल भी दोषी माने गए हैं l "
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