3 July 2024

WISDOM ------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- -यह  कहना  गलत  है  कि   गृहस्थ आश्रम    साधना  में  किसी  तरह  बाधक  है  l  प्राचीन  काल  में   बहुसंख्यक  ऋषि  सपत्नीक  रहकर   गुरुकुल  में  वास  कर  साधना  करते , शिक्षण , शोध -प्रक्रिया  चलाते  थे   l '  ----एक  बार  महर्षि  अत्रि  अपने  आश्रम  से  चलकर  एक  गाँव  में  पहुंचे  l  आगे  का  मार्ग  बहुत  बीहड़  और  हिंसक  जीव -जंतुओं  से  भरा  हुआ  था    इसलिए  वे  रात  को   उसी  गाँव  में   एक   गृहस्थ  के  घर  टिक  गए  l   गृहस्थ  ने  उन्हें  ब्रह्मचारी  वेष  में  देखकर   उनकी  आवभगत  की   और  भोजन  के  लिए  आमंत्रित  किया  l   महर्षि  अत्रि  ने  जब  समझ  लिया   कि  परिवार  के  सभी  सदस्य   ब्रह्मसंध्या  का  पालन  करते  हैं , किसी  में  कोई  दोष -दुर्गुण  नहीं  है   तो  उन्होंने  आमंत्रण  स्वीकार  कर  लिया  l  भोजन  के  उपरांत  अत्रि  ने  गृहस्थ  से  प्रार्थना   की  कि  अपनी  कन्या  मुझे  दीजिए  ,  जिससे  मैं   अपना  घर  बसा  सकूँ  l  उन  दिनों  वर  ही  सुकन्या  ढूँढने  जाते  थे  , कन्याओं  को  वर  तलाश  नहीं  करने  पड़ते  थे  l  गृहस्थ  ने  अपनी  पत्नी  से  परामर्श  किया  l  अत्रि  के  प्रमाण  पात्र  देखे  और  वंश  की  श्रेष्ठता  पूछी  l  वे  जब  इस  पर  संतुष्ट  हो  गए  कि   वर  सब  प्रकार  से  योग्य  है   तो  उन्होंने  पवित्र  अग्नि  की  साक्षी  में   अपनी  कन्या  का  संबंध  अत्रि  के  साथ  कर  दिया  l  अत्रि  के  पास  तो  कुछ  था  नहीं  ,  इसलिए  गृहस्थी  सञ्चालन  के  लिए  आरंभिक  सहयोग   के  रूप  में   अन्न , बिस्तर , बस्तर , थोडा  धन  और  गाय  भी  दी  l   छोटी  किन्तु   सब  आवश्यक  वस्तुओं  से  पूर्ण  गृहस्थी  लेकर  अत्रि  अपने  घर  पधारे   और  सुख पूर्वक  रहने  लगे  l  इन्ही  अत्रि  और  अनसूया  से   दत्तात्रेय   जैसी  तेजस्वी  संतान  को  जन्म  मिला  l  भगवान  को  भी  एक  दिन  इनके  सामने  खुकना  पड़ा  था  l  

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