ऋषि भूरिश्रवा के गुरुकुल में तपोधन नामक शिष्य रहा करता था l वह अत्यंत मेधावी था और ज्ञान के कारण प्राप्त प्रसिद्धि से उसे बहुत अहंकार हो गया था l एक दिन वह नदी के किनारे भ्रमण के लिए निकला तो उसने देखा कि उसके गुरु ऋषि भूरिश्रवा नदी पर चलते हुए आ रहे हैं l उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर ऐसी कौन सी विद्या है , जिसके बल पर ऋषिवर नदी पर चल सकते हैं और उन्होंने उसे यह विद्या नहीं सिखाई l इसी उधेड़बुन में वह ऋषि के पास पहुंचा और उनसे यह प्रश्न किया l ऋषि भूरिश्रवा बोले ---- " पुत्र ! यह विद्या का बल नहीं , भक्ति की सामर्थ्य है l तुम भी सच्ची भावना से प्रभु का नाम लो तो नदी पार पहुँच जाओगे l " तपोधन ने भी नदी के किनारे खड़े होकर प्रभु का नाम लिया , पर जैसे ही वह नदी पर चला , पानी में गिर पड़ा l क्षुब्ध होकर वह ऋषिवर के पास गया और उनसे शिकायत की कि उनका दिया मन्त्र प्रभावहीन रहा l ऋषि ने प्रश्न किया ---- " वत्स ! तुमने कितनी बार भगवान का नाम लिया था ? " तपोधन बोला ---- " गुरुदेव ! मैंने कम -से -कम 24000 बार तो उनका नाम जपा होगा l " यह सुनकर ऋषि भूरिश्रवा बोले ----- " पुत्र ! यहीं तुमसे गलती हो गई l भक्ति भावना का बल मांगती है , संख्या का नहीं l इस बार भावनाओं को अर्पित करो , जप करने के अहंकार को नहीं l गिनतियों का अहंकार डूबेगा , तभी अंतर्मन में भक्ति का उदय होगा l " तपोधन उसी दिन से सच्चे भाव से परमात्मा की भक्ति में जुट गया और एक दिन अपने गुरु की तरह महान भक्तों की श्रेणी में सम्मिलित हुआ l
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