21 August 2024

WISDOM ------

 श्रेणिक  पुत्र  मेघ  ने  भगवान  बुद्ध  से  मन्त्रदीक्षा  ली   और  उनके  साथ  रहकर  तपस्या  में  लग  गए  l  भगवान  बुद्ध  का  कहना  था  कि  आत्मोत्कर्ष  के  लिए  केवल  मन्त्र  जप  ही  नहीं   तप  भी  अनिवार्य  है  l  अत:  वे  मेघ  को  बार -बार  उस  ओर  धकेलने  लगे  l  मेघ  ने  कभी  रुखा  भोजन  नहीं  किया  था  ,  अब  उन्हें  रुखा  भोजन  दिया  जाने  लगा l  कोमल  शैया  के  स्थान  पर  भूमि  शयन  ,  आकर्षक  वेशभूषा  के  स्थान  पर   मोटे  वल्कल  वस्त्र   और  सुखद  सामाजिक   संपर्क  के  स्थान  पर  राजगृह  आश्रम  की  स्वच्छता ,  सेवा -व्यवस्था   एक -एक  कर  इन  सब  में  जितना  अधिक  मेघ  को  लगाया  जाता  ,  उनका  मन  उतना  ही  उत्तेजित  होता  ,  महत्वाकांक्षा  और  अहंकार  बार -बार   सामने  आकर  खड़ा  हो  जाता   और  कहता ---- " ओ  रे  मूर्ख  !  कहाँ  गया  वह  रस  ?  जीवन  के   सुखोपभोग  को  छोड़कर  कहाँ  आ  फँसा  l  "   जब   मन  बहुत  परेशान  हो  गया   तो  मेघ  भगवान  बुद्ध  से  कहने  लगा --- " तात  !  मुझे  तो  साधना  कराइए, तप  कराइए  , जिससे  मेरा  अंत:करण  पवित्र  बने  l "    भगवान  बुद्ध  बोले ---- " तात  !  यही  तो  तप  है  l  विपरीत  परिस्थितियों  में  भी  मानसिक  स्थिरता  -- यह  गुण  है ,  जिसमें  आ  गया  , वही  सच्चा  तपस्वी  है , स्वर्ग  विजेता   है  l  उपासना  तो  उसका  एक  अंग  मात्र  है  l "  मेघ  की  आँखें  खुल  गईं   और  वे  एक   सच्चे  योद्धा  की  भांति   अपने  मन  से  लड़ने , मन  को  जीतने  चल  पड़े  l  

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