2 July 2025
WISDOM ------
प्रकृत्ति के कण -कण में भगवान हैं लेकिन मनुष्य पर दुर्बुद्धि का ऐसा प्रकोप है कि वह स्वयं को भगवान समझने लगा है और अपनी शक्ति व वैभव का दुरूपयोग कर मानवता को ही समाप्त करने पर उतारू है l ऐसे ' महामानवों ' को समझना चाहिए क्या वे नदी , समुद्र , पहाड़ , आकाश , मिटटी और सम्पूर्ण प्रकृत्ति का सृजन कर सकते हैं ? ध्वंस बहुत सरल है l हमारे धर्म में पेड़ -पौधे , नदी , पर्वत , आकाश सभी को देवी -देवता के रूप में पूजने का विधान है l हम उन्हें सम्मान देते हैं , नष्ट नहीं करते क्योंकि हम सब एक माला के मोती है , प्रत्येक मोती का अपना महत्त्व है l --------पुराणों में गोवर्धन पर्वत के संबंध में कथा आती है कि वह कभी सुमेरु पर्वत का शिखर हुआ करता था l जब श्री हनुमान जी सेतुबंधन के समय उसे ला रहे थे तो उनके ब्रजभूमि तक पहुँचते -पहुँचते घोषणा हो गई कि सेतुबंधन का कार्य पूरा हो गया है l अब पर्वत लाने की आवश्यकता नहीं है l यह घोषणा सुनकर हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत को वहीँ रख देना चाहा , जहाँ से वे उसे उठाकर ला रहे थे l ऐसे में गोवर्धन पर्वत ने श्री हनुमान जी से कहा ---- " तुम मुझे घर से , परिवार से , कुटुंब से अलग कर के भगवान की सेवा के लिए ले जा रहे थे , सो तू ठीक था , लेकिन अब मुझे भगवान की सेवा में लगाए बिना मार्ग में यों ही छोड़ देना , यह किसी भी द्रष्टि से उचित नहीं है l हमारे लिए उचित व्यवस्था बनाए बिना छोड़कर मत जाओ l " हनुमान जी असमंजस में पड़े तो उन्होंने भगवान राम से पूछा --- " क्या किया जाए ? " भगवान राम ने उत्तर दिया ---- " गोवर्धन को ब्रज में स्थापित कर दो l अभी तो मेरा राम अवतार है , जब मैं कृष्ण अवतार में आऊंगा तब गोवर्धन को अपना लीलाकेंद्र बनाऊंगा l अभी तो उसे यहाँ सेतु पर रख दिया जाए तो मैं सेतु पार करते समय उस के ऊपर पाँव रखकर निकल जाऊंगा l लौटते समय संभव है कि सेतु का प्रयोग न करना पड़े l इसलिए ब्रज में गोवर्धन के स्थापित हो जाने पर कृष्ण अवतार में मैं उस पर गाय चराने के लिए नंगे पाँव विचरण करूँगा , उसके झरनों के जल में स्नान करूँगा , उसकी मिटटी को अपने शरीर में लगाऊंगा , उसके फूलों से अपना श्रंगार करूँगा और अपना सम्पूर्ण किशोर काल वहीँ गुजारूँगा l " भगवान की इस घोषणा से संतुष्ट होकर गोवर्धन ब्रजभूमि में स्थापित हो गए l
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