लघु -कथा ---- जीवन का रहस्य ---- देवताओं और असुरों में घोर युद्ध हो रहा था l राक्षसों के शस्त्र बल और युद्ध कौशल के सम्मुख देवता टिक नहीं पाते थे l वे हारकर जान बचने भागे और महर्षि दत्तात्रेय के पास पहुंचे और उन्हें अपनी विपत्ति की गाथा सुनाई l महर्षि ने उन्हें धैर्य बँधाया और पुन: लड़ने को कहा l इस बार भी देवता पराजित हो गए और भागकर महर्षि दत्तात्रेय के पास आए l इस बार असुरों ने भी उनका पीछा किया और वे भी आश्रम में आ पहुंचे l असुरों ने आश्रम में बैठी हुई एक अति सुन्दर युवती को देखा तो वह लड़ना भूल गए और उस स्त्री पर मुग्ध हो गए और उसके अपहरण की योजना बनाने लग गए l वह स्त्री रूप बदले हुए लक्ष्मीजी थीं , असुरों का पुइरा ध्यान उन्ही पर केन्द्रित हो गया l महर्षि ने देवताओं से कहा --- " अब तुम तैयारी कर असुरों पर आक्रमण करो l " इस बार के युद्ध में असुर बुरी तरह पराजित हुए l विजय प्राप्त कर के देवता फिर से महर्षि दत्तात्रेय के आश्रम पहुंचे और उनसे पूछा --- " भगवान ! दो बार पराजय और अंतिम बार विजय का रहस्य क्या है ? " महर्षि ने कहा --- " जब तक मनुष्य सदाचारी और संयमी रहता है , तब तक उसमें पूर्ण बल विद्यमान रहता है और जब वह कुपथ पर कदम रखता है , तो उसका आधा बल क्षीण हो जाता है l पर -स्त्री का अपहरण करने की कुचेष्टा में असुरों का आधा बल नष्ट हो गया , तभी तुम उन पर विजय प्राप्त कर सके l "
31 July 2025
29 July 2025
WISDOM ---
इस युग की सबसे बड़ी समस्या दुर्बुद्धि की है l मनुष्य स्वस्थ रहे , सुखी रहे , इसके लिए विभिन्न तरह की चिकित्सा पद्धति हैं लेकिन फिर भी मनुष्य स्वस्थ नहीं है l बड़े - छोटे , सस्ते - महँगे हर तरह के अस्पताल बीमार लोगों से भरे हैं l जिसके पास सब सुख -सुविधा है , वह भी पूर्ण स्वस्थ नहीं है l इसका कारण हमारे ऋषियों ने बताया --' ओषधियां तो व्याधियों की रोकथाम भर करती हैं , मन के पतन पर उनका नियंत्रण नहीं है l जब मनुष्य का मन अधर्मरत होकर विपत्तियों को आमंत्रित करेगा , तब मनुष्य के हाथ में उपचार का अमृत कलश भी हो तब भी वह रोगी होगा l ' दुर्बुद्धि के कारण ही आज मनुष्य पांचो तत्वों को , सम्पूर्ण प्रकृति को प्रदूषित कर रहा है और स्वयं आत्महत्या की ओर बढ़ रहा है l ऋषि पुनर्वसु कहते हैं ---- " बुद्धि विपर्यय मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है l बुद्धि के भ्रमित और पतित होने पर मनुष्य जो करने योग्य काम है उसका परित्याग कर देता है और न करने योग्य काम को करने की प्रवृत्ति बढ़ती है l इससे न केवल शारीरिक व्याधियां बढ़ती हैं , वरन हर दिशा से विपत्तियाँ बरसती हैं l इसलिए शारीरिक व्याधियों के निवारण हेतु मानसिक व्याधियों का समाधान अधिक आवश्यक और प्राथमिकता देने योग्य है l "
26 July 2025
WISDOM -------
जीवन में सफलता के लिए जागरूकता बहुत जरुरी है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'जीवन जीना एक तकनीक है , कला है l जो इसे जानता है , सही मायने में वही कलाकार एवं प्रतिभावान है l ' व्यक्ति पढ़ -लिख कर , शिक्षा प्राप्त कर उच्च पदों पर पहुँच जाता है लेकिन अपनी सामान्य सी जिन्दगी को चलाने के लिए नशा , शराब जैसे मादक द्रव्यों का सहारा लेता है l शांति और सुकून के साथ जीवन जीने के लिए बहुत बड़ी बातों की , सिद्धांतों की आवश्यकता नहीं होती l यदि मनुष्य कोई भी कार्य सोच -विचारकर विवेकपूर्ण ढंग से करे तो व्यर्थ की परेशानियों से बच सकता है l बहुत छोटी सी बात है --मनुष्य अपने स्वाद पर नियंत्रण रखे , बिना सोचे -विचारे कुछ न खाए -पिए तो अनेक समस्याओं से , बीमारी से बच सकता है l एक कथा है --- रेगिस्तान में एक काफिला जा रहा था l रास्ते में एक पेड़ पर बहुत से पके फल लगे थे l सबको भूख लगी थी , इसलिए फल खाने को दौड़े l काफिले के सरदार ने उन्हें रोका और कहा ---'अपने विवेक से काम लो l यदि ये उपयोगी होते तो पहले वाले काफिले ही इन्हें खाकर समाप्त कर देते l पक्षी ही इन्हें कुतर डालते l लेकिन ऐसा नहीं हुआ l ' फलों का परिक्षण करने पर पता चला कि वे जहरीले थे l विवेक से काम लेने से काफिले के प्राणों की रक्षा हुई l
24 July 2025
WISDOM -----
आज संसार में चारों ओर भय का वातावरण है l इसका सबसे बड़ा कारण है कि कलियुग के प्रभाव से लोगों में कायरता बढ़ती जा रही है l ईर्ष्या , द्वेष , कामना , वासना , महत्वाकांक्षा , लालच और दमित इच्छाओं की पूर्ति के लिए अब लोग प्रत्यक्ष रूप से कोई वाद -विवाद , हाथापाई और किसी तरह की लड़ाई नहीं करते l ऐसा करने से उनका असली चेहरा सामने आ जायेगा l इसलिए समाज में सबके सामने सभ्य बने रहकर लोग पीठ पर वार करते हैं l धोखा , षड्यंत्र , ब्लैकमेल , माइंडवाश करना , यह सब आम बात हो गई है l यही कारण है कि आज सब भयभीत है l घर , परिवार , आफिस , समाज में आप जिसके साथ हैं , जिसका विश्वास करते हैं , वह अपनी चालाकी से , अपनी दुर्बुद्धि से आपको कब गिरा दे , मार दे , कोई नहीं जानता l वातावरण में इतनी नकारात्मकता है कि अब किसी का भी विश्वास नहीं किया जा सकता l भय का एक दूसरा रूप भी है , जहाँ व्यक्ति अपनी ही कमजोरियों से भयभीत है l और आश्चर्य यह है कि वह अपनी कमजोरियों पर विजय पाने का कोई प्रयास नहीं करता बल्कि अपनी कमजोरियों के साथ जीवन जीने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है l वैराग्यशतक में भतृहरि ने लिखा है ---- " भोग में रोग का भय , सत्ता में शत्रुओं का भय , सामाजिक स्थिति में गिरने का भय , सौन्दर्य में बुढ़ापे का भय और शरीर में मृत्यु का भय है l इस संसार में सब कुछ भय से युक्त है l निर्भयता से जीने के लिए उन्होंने त्याग का मार्ग बताया है l " लेकिन युग का प्रभाव ऐसा है कि अब लोग 'त्याग ' शब्द को ही भूल गए हैं l जब मनुष्य से ईश्वर से डरेगा , ईश्वर से भय खायेगा , तभी उसे संसार में दूसरा भय नहीं सताएगा l
17 July 2025
WISDOM ------
प्राकृतिक आपदाएं तो संसार में शुरू से ही आती रही हैं लेकिन मनुष्य अपनी गलतियों से इन आपदाओं की तीव्रता को बढ़ा देता है l मनुष्य कहाँ गलत है इसे सरल ढंग से समझा जा सकता है , जैसे --मनुष्य अपनी धन -संपदा , गहने , बहुमूल्य धातुओं को बहुत संभालकर , छुपाकर रखता है l चोरी से बचने के लिए तो छुपाकर रखा ही जाता है लेकिन यदि ये बहुमूल्य संपदा --हीरे , मोती , स्वर्ण आदि सड़क पर बिखेर दिए जाएँ तो लूट मच जाए , बलवा हो जाए l बेवजह सामाजिक जीवन में संकट न हो इसलिए जीवन के सभी क्षेत्रों में मर्यादा जरुरी है l इसी तरह धरती माँ अपनी बहुमूल्य संपदा को अपने गर्भ में छुपाकर रखती है और ऐसी संपदा जिससे मानव जीवन के अस्तित्व पर खतरे के बादल आ जाएँ , उन्हें और भी गहराई में छुपाकर धरती माँ रखती है l लेकिन अब इसे मनुष्य का लालच कहें या असुरक्षा का भाव , मनुष्य बहुत गहराई तक खोदकर वह सब सामग्री धरती के ऊपर ले आया जिनसे बम और मारक अस्त्र -शस्त्र बनते हैं l मनुष्य ने मर्यादा का उल्लंघन कर दिया , इसलिए अब विध्वंसक रूप में प्राकृतिक आपदाएं आना स्वाभाविक है l सहन शक्ति की भी कोई सीमा होती है l एक ओर तो धरती पर पाप , अपराध , अत्याचार बढ़ता जा रहा है और इसके साथ मनुष्य तंत्र , ब्लैक मैजिक , भूत , प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों के प्रयोग से सम्पूर्ण वातावरण को नकारात्मक बना रहा है l नकारात्मक शक्तियों को भी तो अपनी खुराक चाहिए l मनुष्य के अस्तित्व पर दोहरा आक्रमण है --एक ओर प्रकृति नाराज है इसलिए सामूहिक दंड देती है l दूसरी ओर नकारात्मक शक्तियां अपनी खुराक के लिए ऐसी ह्रदय विदारक घटनाओं को रचती हैं , इससे उनको खुराक भी मिलती है और उनकी फौज भी बढ़ती है l कहते हैं जब जागो , तभी सवेरा l संसार के सभी देश अपने विध्वंसक हथियारों , बम आदि को समुद्र में फेंक दें , इस तरह लड़ने से कोई स्वर्ग का सिंहासन तो मिल नहीं रहा ! प्रत्येक मनुष्य जागरूक हो , मर्यादा में रहे , अपने गलत कर्मों से अगले जन्म में भूत -प्रेत बनने की तैयारी न करे l
16 July 2025
WISDOM -------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' अहंकार जब व्यक्ति के सिर पर चढ़ता है तो उसे एहसास कराता है कि कोई उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता , क्योंकि वह सबसे श्रेष्ठ है , वह शक्तिमान है , दुनिया उसी के इशारों पर चल रही है , उसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता l लेकिन ऐसा संभव नहीं है , इसलिए एक न एक दिन वह पराजित होता है और उसकी पराजय उसे यह एहसास कराती है अहंकार का नाश होना ही एकमात्र सच्चाई है l ' आचार्य श्री कहते हैं ---" हमारे व्यक्तित्व की सार्थकता सद्भावनाओं , सद्विचारों और सत्कर्मों से है , अहंकार के अनुचित पोषण में नहीं l पूरे जीवन केवल अहंकार को पोषित करने के लिए जिया जाए तब भी उसकी संतुष्टि संभव नहीं है l '------ एक सत्य घटना है --- दक्षिण में मोरोजी पंत नामक एक बहुत बड़े विद्वान थे l उनको अपनी विद्या का बहुत अभिमान था l वे अपने समान किसी को भी विद्वान नहीं मानते थे और सबको नीचा दिखाते रहते थे l एक दिन की बात है वे दोपहर के समय अपने घर से स्नान करने के लिए नदी पर जा रहे थे l मार्ग में एक पेड़ पर दो ब्रह्मराक्षस बैठे हुए थे l वे आपस में बातचीत कर रहे थे l एक ब्रह्मराक्षस बोला --- " हम दोनों इस पेड़ की दो डालियों पर बैठे हैं , पर यह तीसरी डाली खाली है , इस पर बैठने के लिए कौन आएगा ? " तो दूसरा ब्रह्मराक्षस बोला ----- " यह जो नीचे से जा रहा है न , यहाँ आकर बैठेगा , क्योंकि इसको अपनी विद्वता का बहुत अभिमान है l " उन दोनों के संवाद को मोरोजी पंत ने सुना तो वे वहीँ रुक गए और विचार करने लगे कि हे भगवन ! विद्या के अभिमान के कारण मुझे प्रेतयोनि में जाना पड़ेगा , ब्रह्मराक्षस बनना पड़ेगा l वे अपनी होने वाली दुर्गति से घबरा गए और मन ही मन संत ज्ञानेश्वर के प्रति शरणागत होकर बोले --- " मैं आपकी शरण में हूँ , आपके सिवाय मुझे बचाने वाला कोई नहीं है l " ऐसा सोचते हुए वे वहीँ से आलंदी चले गए और जीवन पर्यंत वहीँ रहे l आलंदी वह स्थान है जहाँ संत ज्ञानेश्वर ने जीवित समाधि ली थी l संत की शरण में जाने से उनका अभिमान चला गया और वे भी संत बन गए l
13 July 2025
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दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं , वे परोपकारी और समस्त मानवता के लिए संवेदनशील होते हैं l महानता की राह पर चलने वाले व्यक्ति अन्याय और शोषण के विरुद्ध लड़ते हैं l उन्हें दूसरों का दुःख -दरद अपना प्रतीत होता है और वे उसे दूर करने का यथासंभव प्रयास भी करते हैं l चीन के सम्राट महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस की महानता से परिचित थे l एक दिन वे कन्फ्यूशियस से बोले ---- " तुम मुझे उस व्यक्ति के पास ले चलो , जो महान हो l " इस प्रश्न को पूछने के पीछे सम्राट का भाव था कि कन्फ्यूशियस स्वयं को या सम्राट को महान की श्रेणी में रखेंगे लेकिन कन्फ्यूशियस उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति के पास ले गए जो बहुत कमजोर भी था लेकिन कुआं खोद रहा था l कन्फ्यूशियस बोले --- " सम्राट ! मुझसे अधिक महान यह वृद्ध है l यह शरीर से दुर्बल है लेकिन परोपकार के भाव से कुआं खोद रहा है l परोपकार में ही इसका तन और मन आनंदित होता है l इससे अधिक महान और कौन हो सकता है l "
11 July 2025
WISDOM -----
10 July 2025
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सिकंदरिया का राजा टालेमी , यूक्लिड से ज्यामिति सीख रहा था , किन्तु यह कठिन विद्या उसके पल्ले ही नहीं पड़ रही थी l एक दिन टालेमी अपना धैर्य खो बैठा l उसने अपने गुरु से पूछा ---- " क्या ज्यामिति सीखने का कोई सरल मार्ग नहीं है ? " यूक्लिड ने गंभीरता से कहा --- " राजन ! आपके राज्य में जनसाधारण और अभिजात वर्ग के लिए पृथक मार्ग हो सकते हैं , किन्तु ज्ञान का मार्ग सबके लिए एक सा ही है l इसमें अभिजात वर्ग के लिए कोई राजमार्ग नहीं है l " यह बात टालेमी को समझ में आ गई l फिर इसके बाद टालेमी ज्यामिति सीखने के लिए कठोर परिश्रम करने लगा l
9 July 2025
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कहते हैं यदि भगवान नाराज हो जाएँ तो गुरु बचाने वाले हैं , लेकिन यदि गुरु नाराज हो जाएँ तो उसे कोई नहीं बचा सकता l गुरु पूर्णिमा को ' व्यास पूर्णिमा ' भी कहा जाता है l महर्षि वसिष्ठ के पौत्र , महर्षि पराशर के पुत्र ' वेदव्यास ' जन्म के कुछ समय बाद ही अपनी माँ से आज्ञा लेकर तपस्या करने चले गए थे l वेदों को विस्तार प्रदान करने के कारण ही इनका नाम 'वेदव्यास ' पड़ा l ' गुरु पूर्णिमा ' का पर्व गुरु के प्रति समर्पित है l ' सच्चे गुरु के लिए सैकड़ों जन्म समर्पित किए जा सकते हैं l सच्चा गुरु वहां पहुंचा देता है , जहाँ शिष्य अपने पुरुषार्थ से कभी नहीं पहुँच सकता l " गुरु के द्वारा कहे गए वाक्य मूलमंत्र हैं , वे हमें जीवन जीना सिखाते हैं l l बाहरी शत्रुओं से तो एक बार हम अपनी शक्ति और सामर्थ्य से लड़कर विजयी हो भी सकते हैं लेकिन अपने भीतरी शत्रुओं ---काम , क्रोध , लोभ और अहंकार पर विजय तो केवल और केवलमात्र गुरु कृपा से ही संभव है l अपनी पूजा -साधना से हम अपने मानसिक विकारों को पराजित नहीं कर सकते l अहंकार और कामवासना जैसे दुष्ट शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना तो असंभव है लेकिन सच्चे गुरु असंभव को संभव कर देते हैं l वे एक बार नहीं अनेकों बार अपने शिष्य को गहरी खाई में गिरने से बचाते हैं , उसे जीवन जीना सिखाते हैं , उसकी चेतना का विस्तार करते हैं l गुरु की कृपा प्राप्त करने के लिए शिष्य को भी सच्चा शिष्य बनना होगा l गुरु ने अपने प्रवचनों और साहित्य के द्वारा जो विचार हमें दिए , जो मार्ग दिखाया , उसका अनुसरण करें l
6 July 2025
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5 July 2025
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श्री माँ ( श्री अरविन्द आश्रम ) पांडिचेरी लौट रही थीं l l तूफ़ान के कारण जहाज में हिचकोले लगने लगे l अंत:द्रष्टि संपन्न श्री माँ ने देखा कि संभवतः कोई भी न बचे , ऐसा भयंकर तूफान है l उन्होंने सुप्रसिद्ध तंत्र विशेषज्ञ ' तेओं ' से दीक्षा ली थी l वे केबिन में चली गईं और स्वयं को बंद कर लिया l सूक्ष्म शरीर से वे समुद्र में चली गईं l उन्होंने देखा , कुछ सूक्ष्म शरीरधारी आत्माएं समुद्र के पानी को तीव्र वेग से उछाल रही हैं l उनसे उन्होंने वार्तालाप किया l वे बोलीं ---- " हम तो खेल रहे हैं l आपका जहाज ही बीच में आ गया l " श्री माँ ने कहा --- " आप थोड़ी देर विराम कर लें l हम इस बीच जहाज निकाल लेंगे l " श्री माँ यह विनती कर के केबिन से बाहर आ गईं l अचानक तूफान थम गया l उन्होंने कहा --- " तुरंत जहाज निकाल लो l फिर तूफान आ सकता है l " स्पीड बढ़ाकर जहाज निकाला गया l देखा गया पीछे फिर तूफान आरम्भ हो चुका था l ' श्वेत कमल ' ग्रन्थ में इस घटना का उल्लेख है l
4 July 2025
WISDOM -----
इस युग की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि मनुष्य के भीतर ज्ञान तो बढ़ता जा रहा है लेकिन वह विवेकशून्य होता जा रहा है l उसे स्वयं नहीं मालूम कि वह आखिर चाहता क्या है ? भीषण युद्ध हो रहे , दंगे हो रहे , बेकसूर लोग मारे जा रहे हैं l बेकसूर महिला , बच्चों को मारने और पर्यावरण को प्रदूषित करने का कोई ठोस कारण नजर नहीं आता l दुर्बुद्धि का सबसे बड़ा प्रमाण तो यह है कि जब कहीं वश न चले तो धार्मिक स्थलों को , प्राचीन मूर्तियों को ही तोड़ डालो l यदि इस संबंध में गहराई से विचार करें तो एक बात स्पष्ट है कि मनुष्य कितना भी आधुनिक हो जाए वह ईश्वर से डरता तो है लेकिन ईश्वर की प्रतीक मूर्तियों को तोड़कर वह स्वयं को नास्तिक होने का दिखावा करता है l प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक आत्मा है , जो पवित्र है l व्यक्ति जो भी कुकर्म करता है , उसकी आत्मा उसे बार -बार बताती है कि तुम ये गलत कर रहे हो लेकिन वह अपनी आत्मा की आवाज को अनसुना कर देता है और एक बड़े अपराधी की तरह अपने कुकर्मों के सबूत मिटाना चाहता है l उसे लगता है कि धार्मिक स्थल और उनमें छिपा बैठा ईश्वर उसे देख रहा है , कहीं उसे दंड न दे दे , इसलिए इस सबूत को मिटा डालो l ऐसे लोग वास्तव में बड़े भोले हैं , उन्हें नहीं मालूम ईश्वर तो प्रकृति के कण -कण में है , वे हजार आँखों से हमें देख रहे हैं l एक आस्तिक व्यक्ति तो अपने धार्मिक स्थल पर अपने तरीके से पूजा -पाठ कर लौट आता है , वहां ईश्वर हैं या नहीं , यह सोचने की उसे फुर्सत नहीं है क्योंकि दैनिक जीवन की अनेक समस्याएं हैं लेकिन जो ईश्वर के प्रतीक चिन्हों को तोड़ते हैं , वे अवश्य ही किसी न किसी जन्म में ईश्वर के बड़े भक्त रहे होंगे , वे इन प्रतीकों में ईश्वर का अस्तित्व देखते हैं , उनकी निगाहों से डरते हैं इसलिए उन्हें मिटाकर चैन की साँस लेते हैं l बड़े -बड़े भक्तों से भी कभी कोई गलती हो जाती है , वे अपनी राह भटक जाते हैं l उन्हें अपना पूर्व जन्म याद नहीं आता इसलिए पाप के मार्ग पर चलते जाते हैं l यदि उनके जीवन को सही दिशा मिल जाये , वे स्वयं को पहचान जाएँ तो संसार में बिना वजह के युद्ध , दंगे सब समाप्त हो जाएँ l बड़ी मुश्किल से जो मानव जन्म मिला , उसे सुकून के साथ जी सकें l